भाजपा के एक राज्यसभा सांसद हैं के जे अल्फोंस। IAS की नौकरी छोड़कर राजनेता बने केरल निवासी के जे अल्फोंस सिर्फ गैरजरूरी और बेतुकी बातों के लिए चर्चा में रहते हैं। केंद्रीय मंत्री रहते विदेशी पर्यटकों की बिकनी और बीफ इनके चिंतन का केंद्र बिन्दू था। अभी तीन दिसंबर को अल्फोंस ने राज्यसभा में प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में एक संविधान संशोधन बिल पेश किया था। बिल में यह प्रस्तावित था कि संविधान की प्रस्तावना में वर्णित ‘समाजवाद’ शब्द को हटा दिया जाय।

अल्फोंस का ये प्रस्ताव सोचने पर मजबूर कर दे रहा है कि क्या भारत के लिए फिलहाल इससे ज्यादा गैर-जरूरी कोई मुद्दा हो सकता है। जो देश ग्लोबल हंगर इंडेक्स के मामले में सौ का आंकड़ा पार कर चुका है। प्रेस फ्रिडम इंडेक्स, डेमोक्रेसी इंडेक्स के आंकड़े शर्मानाक स्तर पर जा चुके है। हैपिनेस इंडेक्स में देश के सिर्फ दो, चार पूंजीपति मित्र खुश नजर आ रहे हैं। पर्यावरण का अंदाजा गैस चेम्बर बन चुकी देश की राजधानी दिल्ली से लगाया ही जा सकता है। बेरोजगारी तो युवाओं का गहना बन चुका है…. बेरोजगार होना न्यू नॉर्मल है।

ये सिर्फ कुछ मुद्दें हैं… ऐसे हजारों मुद्दों को कश्मीर से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक बंदूक की नोक हर रोज दबाए जा रहे हैं। लेकिन अल्फोंस का कहना है कि ये सब होता रहेगा पहले संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी हटाकर ‘न्यायसंगत’ शब्द जोड़ दो। न्यायसंगत शब्द जोड़ देने से क्या नया हो जाएगा ये अल्फोंस जी ने नहीं बताया। और समाजवादी का मतलब क्या होता है- सभी को राजनैतिक व आर्थिक समानता प्रदान करने के साथ ही वर्ग आधारित शोषण को समाप्त करना ही तो समाजवाद है। समाजवाद का उद्देश्य क्या है- बहुत आसान भाषा में कहें तो अभाव, उपेक्षा और अवसरों की असमानता का अंत करना और जनकल्याण को महत्व देना। ये शब्द संविधान की प्रस्तावना के लिए क्यों न्यायसंगत नहीं है।

समाजवादी शब्द से वैचारिक कुंठा के अलावा और क्या परेशानी हो सकती है। खैर, राज्यसभा में बिल के आते ही विपक्षी सदस्यों ने पुरजोर विरोध किया। राजद नेता मनोज झा ने कहा, “नियम 62 कहता है कि यदि कोई बिल एक ऐसा बिल है जो संविधान संशोधन से जुड़ा है तो ऐसा बिल राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी या सिफारिश के बिना पेश नहीं किया जा सकता है, और सदस्य इस तरह की मंजूरी या सिफारिश को नोटिस के साथ संलग्न करेगा, एक मंत्री के माध्यम से सूचित किया जाएगा और नोटिस तब तक वैध नहीं होगा जब तक कि इस आवश्यकता का अनुपालन नहीं किया जाता है।” इसके बाद उप-सभापति ने स्पष्ट किया कि इस बिल के साथ राष्ट्रपति की मंजूरी या सिफारिश नहीं है और बिल को रिजर्व रख लिया।

बिहार के नेता विपक्ष और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस बिल का विरोध करते हुए ट्वीट किया है कि, “केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा संविधान बदलने की एक चोरी कल संसद में पकड़ी गयी जब इन्होंने संविधान की प्रस्तावना जिसे इसकी आत्मा कहा जाता है उसमें से “समाजवादी” शब्द को हटाने का संविधान संशोधन विधेयक पेश किया लेकिन हमारे सजग और सतर्क सदस्यों ने कड़ा विरोध कर इस विधेयक को वापस कराया”

वैसे बता दें कि ये कोई पहला मामला नहीं है जब भाजपा, आरएसएस और अन्य हिन्दूवादी संगठनों ने संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द पर मुंह बिचकाया हो। साल 2015 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर सरकार की ओर से जारी विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना ही बदल दी गई थी। विज्ञापन में प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द ही गायब थे।

विज्ञापन संख्या DAVP22201/13/0048/1415 में संविधान की प्रस्तावना दिखी, जिसमें लिखा था “हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए… “। जबकि संविधान की प्रस्तावना है “हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्म निरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए… “।  इसके अलवा सुप्रीम कोर्ट के सामने भी संविधान की प्रस्तावना से समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने के लिए याचिका दाखिल की जा चुकी है।

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