साल 2016 में पीएम मोदी ने ग्रामीण गृहणियों के लिए उज्जवला योजना की शुरुआत की थी। तब से लेकर अब तक पीएम मोदी अपनी हर रैली, जनसभा में इस योजना का ढोल पीटते हैं और अपनी पीठ थपथपाते हैं, कि उनकी इस योजना से ग्रामीण महिलाओं को खाना बनाने के लिए अब लकड़ी, कंडे, कोयले का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता। वो अब गैस सिलिंडर से बेहद आसानी से खाना बनाती हैं। लेकिन सच्चाई इससे उलट है।

हिंदी के एक अख़बार की पड़ताल में ये बात सामने आई है कि, जिन लोगों को प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेंडर दिए गए थे। उनमें से 85 फ़ीसदी ने सिलेंडर छोड़ फिर से धूएँ वाले चूल्हे पर खाना पकाना शुरू कर दिया है।

अख़बार की इंदौर में की गई पड़ताल में ये बात सामने आई है कि, यहाँ 58 हज़ार से ज़्यादा लोगों को उज्जवला योजना के तहत कनेक्शन दिए गए थे, लेकिन बहुत बड़ी तादाद में लोगों ने सिलेंडर रीफ़िल नहीं कराए।

देश ‘हिंदू-मुस्लिम’ में लगा है और डोभाल के ‘बेटे’ सऊदी के मुसलमानों के साथ धंधा कर रहे हैं, वाह मोदी जी वाह : रवीश

इसकी वजह है झूठ, मोदी सरकार का झूठ! योजना की शुरुआत से लेकर आजतक पीएम कहते हैं कि हमने मुफ़्त में ग्रामीण महिलाओं को गैस के कनेक्शन दिए हैं लेकिन सच्चाई ये है कि, ये मुफ़्त नहीं बल्कि लोन के बदले दिए गए थे।

दरअसल कनेक्शन के लिए चूल्हे और गैस सिलेंडर के पैसे क़र्ज़ के तौर पर दिए गए थे नाकि सब्सिडी के तौर पर। इसके साथ ये शर्त थी कि जब तक उपभोक्ता क़र्ज़ के पैसे चुका नहीं देता तब तक उसे बिना सब्सिडी वाले मंहगे सिलेंडर लेने होंगे।

राफेल पर झूठी निकली मोदी सरकार! फ्रांस को 1541 करोड़ नहीं 517 करोड़ में राफेल बेच रही है डसौल्ट

फिर एलपीजी के दाम और चूल्हे की क़ीमत मिलाकर इस क़र्ज़ की क़ीमत 2000 रुपये तक पहुँच गई। शर्त ये थी कि क़र्ज़ चुकाने तक उन्हें बग़ैर सब्सिडी वाले सिलेंडर लेने हैं।

ऐसे में गाँव वालों के लिए बिना सब्सिडी के 1000 रू. के आने वाले सिलेंडर को हर महीने ख़रीदना मुश्किल हो गया। जिसका नतीजा ये निकला की मजबूरन उन्हें फिर से चूल्हे की ओर लौटना पड़ा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here