आज से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो चुका है। संसद में दिए वित्त मंत्रालय के एक लिखित जवाब से पता चला है कि भारत सरकार ने इस वर्ष के शुरुवाती 6 महीने में ही कॉर्पोरेट्स के 46,382 करोड़ का लोन माफ कर दिया है।

दरअसल, सांसद सुशील कुमार सिंह ने वित्त मंत्री से कॉर्पोरेट ऋण की माफी से जुड़े सवाल पूछे थे। सवाल था – क्या यह तथ्य है कि बैंकों द्वारा चालू वित्त वर्ष के प्रथम नौ महीनों में 1.5 लाख करोड़ रुपये की राशि के ऋण को बट्टे खाते में डाला गया था, यदि हां तो ब्यौरा क्या है।

केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री डॉ. भागवत कराड ने इस सवाल के लिखित जवाब में बताया है कि, ”वैश्विक परिचालन के आरबीआई के आंकडों के अनुसार, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ने चालू वित्त वर्ष 2021-22 के प्रथम छमाही के दौरान 46,382 करोड़ रुपये के ऋण को बट्टे खाते में डाल दिया है।”

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सुशील कुमार सिंह ने उन कॉर्पोरेट घरानों के नाम भी पूछे थे जिनका ऋण माफ किया गया है। लेकिन सरकार ने नियमों का हवाला देकर नाम नहीं बताया है।

यह जानकारी सार्वजनिक होते ही मोदी सरकार को एक बार फिर कॉरपोरेट हितैषी सरकार बताया जाने लगा है। स्वराज इंडिया के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने मोदी सरकार को घेरते हुए लिखा है, ”कॉरपोरेट या किसान? आज सरकार ने लोक सभा को बताया: इस वर्ष के शुरुवाती 6 महीने में ही कॉर्पोरेट्स के 46,382 करोड़ के लोन माफ किए गए। लगभग इतना ही पैसा सालाना किसान को एमएसपी देने में खर्च होगा। लेकिन उसके लिए सरकारी बजट में पैसा नहीं है! हम दो, हमारे दो के बीच तीसरे का क्या काम?”

बता दें कि, आज संसद के शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन तीनों कृषि कानूनों की वापसी पर मुहर लग गई है। विपक्ष के जोरदार हंगामे के बीच कृषि कानूनों की वापसी का बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास हो गया। अब राष्ट्रपति के मंजूरी मिलते ही तीनों कानून रद्द हो जाएगा।

लेकिन एक वर्ष से चले रहे किसान आन्दोलन की मांग सिर्फ कृषि कानूनों की वापसी नहीं थी। संयुक्त किसान मोर्च ने प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखकर अपनी छः मांगों को रखा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण मांग है- न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गांरटी। किसान एमएसपी की अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

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