साल 2014 का लोकसभा चुनाव गुजरात मॉडल दिखाते हुए विकास के नाम लड़ा गया था। अब वो सभी अहम मुद्दे जो अब कहीं पीछे छुट गए है अब वाइब्रेंट गुजरात बाज़ार में पुराना हो चुका है। इस बार यानी कि 2019 लोकसभा चुनाव राष्ट्रवाद बनाम आतंकवाद के नाम पर लड़ा जा रहा है।

चुनाव करीब आते ही ऐसा देखा गया है कि मोदी सरकार चुनावी मोड में चली गई। देश में अचानक जंग की बात होने लगी और जिसे देखते हुए व्यक्ति केंद्रित नारा गढ़ा गया मोदी है तो मुमकिन है। भले ही रोज सीमा पर सेना के जवान मारे जा रहें हो मगर बीजेपी लगातार सेना के शौर्य को सीधे सीधे पीएम मोदी की ब्रांडिंग के लिए इस्तेमाल करने में लगी हुई है।

यही वजह है कि चुनाव आयोग के सख्त निर्देश के बावजूद पीएम मोदी पाकिस्तान पर की गई एयरस्ट्राइक को भुनाने में पीछे नहीं रहें और कहा कि देश तय करेगा की उसे सपूत चाहिए या फिर सुबूत चाहिए

वहीं अगर कल की बात करें तो पीएम मोदी ने देश को संबोधित करते हुए जानकारी दी कि भारत अंतरिक्ष में सुपर पावर बन गया है। उन्होंने कहा कि भारत ने अंतरिक्ष में 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक सैटेलाइट को मिसाइल से मार गिराया है। यह भारत का एंटी सैटेलाइट हथियार का पहला प्रयोग है और इसे एक बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है।

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आमतौर पर इस मामले पर डीआरडीओ (DRDO) या फिर इसरो (ISRO) जैसे सरकारी संस्थान देश को ये जानकारी देते हैं। मगर चुनावी मौसम में देश के सम्मान से जुड़ा हुआ कोई भी मौका पीएम मोदी अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते है देश से जुड़े हर मुद्दों पर चुनावी वक़्त में राष्ट्रवाद की पैकेट में ज़रूर बेचा जायेगा और हुआ भी यही।

हालाकिं इस बयान पर सीपीएम सीताराम येचुरी ने पीएम मोदी की शिकायत चुनाव आयोग में कर दी जिसके बाद आयोग ने पीएम मोदी के उस भाषण की कॉपी मंगवाई है। अब उस मामले पर रिपोर्ट आना बाकी है।

सवाल उठता है कि पीएम मोदी जो वायुसेना की एयरस्ट्राइक पर हर चुनावी रैली में भुनाने में क्यों लगे हुए है। जो मोदी सेना के दम और वैज्ञानिकों के कमाल पर अपनी सरकार की उब्लब्धि के तौर पर पेश करने की कोशिश में जुटे है आखिर वो नोटबंदी की बात या उसका श्रेय क्यों नहीं लेते है?

आखिर नोटबंदी भी तो सरकार के कथित साहसिक फैसलों में से एक था। आखिर सेना और वैज्ञानिकों के काम को सरकार कबतक क्रेडिट लेती रहेगी? आखिर ऐसा क्यों है कि रात के 12 बजे लागू हुई जीएसटी (GOODS AND SERVICES TAX) की सफलता पर वोट नहीं मांग रही है? वहीं पीएम मोदी भी जानते है की विपक्ष झूठे आरोप लगा सकता है मगर आकड़े उनके पक्ष में नहीं है।

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नोटबंदी और जीएसटी के कारण छोटे व्यापारियों को सबसे ज़्यादा नुकसान उठाना पड़ा था। जिसकी वजह से बेरोजगारी 45 सालों में सबसे ज्यादा मोदी राज में ही बढ़ी। क्या पीएम मोदी अब सिर्फ सेना और वैज्ञानिकों के नाम वोट मांगते रहेंगें या अपना रिपोर्ट कार्ड भी पेश करेंगें की क्या वो विदेशों में जमा कालाधन कितना लाए इसका हिसाब जनता को कब देंगें?

क्या वो रोजगार डेटा जो सरकार कई दिनों से दबा रही है उसे चुनाव के वक़्त में जनता के सामने रखेंगें? इसका जवाब शायद ही इस चुनाव में मिल पाए। मगर अहम सवाल जो हर मतदाता के मन वोट करने से पहले होगा की क्या मतदाता अपने मतों द्वारा पीएम मोदी से हिसाब ज़रूर लेंगें? ये देखना अभी बाकी है।

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