Tanya Yadav

प्रधानमंत्री मोदी आजकल पत्रकारों के साथ-साथ एक्टरों को भी इंटरव्यू दे रहे हैं. फिर भी विपक्षी दल और खुद मीडिया जगत के लोगों को शिकायत है कि प्रधानमंत्री मोदी सवालों से बचते हैं.

ऐसा इसलिए है क्यूंकि ये वही प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने बीते पांच सालों में मीडिया के कड़े सवालों से बचने के लिए ‘मन की बात’ से अपना काम चलाया है. ये वही प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने आम जनता के बेरोज़गारी के सवालों के बजाए खुदके “आम के शौक” को एहमियत दी है.

प्रधानमंत्री मोदी ने यूँ तो मीडिया से खासा इंटरेक्शन नहीं किया है, फिर भी जितना किया है वो उनकी चुनावी रैलियों से कुछ अलग नहीं लगता. रैलियों में उनके लिए पुलवामा और देश की सुरक्षा उनका चुनावी मुद्दा होता है. इंटरव्यू ले रहे पत्रकारों को भी शायद यही ज़रूरी लगता होगा. इसलिए वो महिला सुरक्षा, नौकरियां, किसानों को फसल का सही दाम आदि मुद्दों पर प्रधानमंत्री से कड़े सवाल नहीं कर पाते हैं.

सबसे बड़ी बात तो ये है कि अगर प्रधानमंत्री मोदी के लिए पुलवामा और बालाकोट ही मुद्दा है, तो इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार उनसे सुरक्षा चूक पर सवाल क्यों नहीं करते? पत्रकारों और विपक्षी दलों ने हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी के आज तक और इंडिया टुडे को दिए गए इंटरव्यू पर भी सवाल खड़े हैं.

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PDP नेता मेहबूबा मुफ़्ती ने सवाल किया है कि आखिर क्यों पत्रकार प्रधानमंत्री से असली सवाल नहीं पूछते? उन्होंने कुछ दूसरे पत्रकारों का नाम लेते हुए कहा कि प्रधानमंत्री को इनके सवालों का सामना करना चाहिए ना की कोई PR एक्सरसाइज करनी चाहिए. स्वाति चतुर्वेदी ने तो यहाँ तक कह दिया कि उन्हें कम से कम एक प्रेस कांफ्रेंस तो करनी ही चाहिए. वरना वो इतिहास में भारत के पहले प्रधानमंत्री होंगे जिन्होंने एक भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की हो.

सबसे बड़ी बात ये है कि जो पत्रकार नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू लेते भी हैं, वो कभी क्रॉस-क्वेश्चन नहीं करते. यानी कि अगर मोदी कोई झूठ बोले, तब भी उनसे पलटकर सवाल नहीं किया जाता. अब प्रधानमंत्री के आज तक को दिए गए इंटरव्यू को ही ले लीजिए, वो कहते हैं की वो गरीबी के नाम पर वोट मांगने के पक्ष में नहीं हैं. लेकिन ये सब जानते हैं कि उन्होनें चायवाला, चौकीदार और पिछड़ा होना, सबके नाम पर वोटमाँगा है.

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राहुल कँवल ने पूछा था कि मोदी सरकार के समय रोज़गार के आंकड़ें नहीं आ रहे. इसके जवाब में प्रधानमंत्री कहते हैं कि 1-2 साल के अंदर ऐसा कोई तरीका निकाला जाएगा ताकि सही आंकड़ें आएं. लेकिन राहुल ने पलट कर मोदी से CMIE रिपोर्ट और बाकि जारी रिपोर्ट पर सवाल नहीं किए. उन्होनें नहीं पूछा कि आखिर क्यों साल 2018 में 1.1 करोड़ लोगों की नौकरी चली गयी.

शायद इसलिए प्रधानमंत्री मोदी उन्हीं पत्रकारों को इंटरव्यू देते हैं जो उनकी तारीफ करें, उनका PR करें. सुधीर चौधरी, अंजना ओम कश्यप, अर्नब गोस्वामी और नाविका कुमार जैसे पत्रकार अक्सर अपने शोज़ में मोदी की तारीफ करते नज़र आते हैं. और यही लोग प्रधानमंत्री का इंटरव्यू भी पाते हैं. यही वजह है की ऐसे मीडिया संस्थानों को ‘मोदी मीडिया’ कहा जाने लगा है.

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