Nidhi Razdan
Nidhi Razdan Tweet on Mobile Internet Suspended in Assam for 24 Hours

पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिकता संसोधन बिल (CAB) के खिलाफ़ सबसे ज़्यादा आवाज़ें उठाई जा रही हैं। बिल के खिलाफ़ जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किए जा रहे हैं। विरोध की इन आवाज़ों को दबाने के लिए सरकार की ओर से भरपूर प्रयास किए जा रहे हैं। अब असम की सोनोवाल सरकार ने प्रदर्शन के मद्देनज़र 10 जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवा सस्पेंड करने का फैसला किया है।

ख़बरों के मुताबिक, असम में शाम 7 बजे से अगले 24 घंटे के लिए मोबाइल सेवाएं रोक दी गई हैं। स्थानीय प्रशासन ने अभी जिन 10 जिलों में मोबाइल इंटरनेट सेवा को सस्पेंड किया है उनमें लखीमपुर, धीमाजी, तिनसुकिया, डिब्रूगढ़, चरादियो, शिवसागर, जोरहाट, गोलाहाट, कामरप (मेट्रो) और कामर शामिल हैं।

असम में मोबाइल इंटरनेट सेवा सस्पेंड किए जाने पर NDTV एंकर निधि राजदान ने ट्विटर पर लिखा- गुवाहाटी में कर्फ्यू लग गया है, मोबाइल इंटरनेट 24 घंटे के लिए बंद कर दिए गए हैं, डियर असम, आपका दर्द कश्मीर समझ सकता है।

इससे पहले त्रिपुरा में भी विरोध के चलते 48 घंटे तक इंटरनेट पर बैन लगाया गया था। त्रिपुरा में बीते मंगलवार को ही एसएमएस और इंटरनेट सेवा पर भी रोक लगा दी गई थी। इन दोनों राज्यों में प्रदर्शन किस स्तर पर हो रहे हैं, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां इंडियन आर्मी की तैनाती की गई है।

आर्मी के तीन कॉलम को स्थानीय प्रशासन की मदद के लिए यहां भेजा गया है। 2 कॉलम की तैनाती त्रिपुरा में की गई है जबकि बचे हुए 1 कॉलम को असम में तैनाती से पहले स्टैंड बाई मोड में रखा गया है। इसके साथ ही छात्र संगठनों के विरोध को देखते हुए यहां 5 हज़ार पैरामिलिट्री फोर्स को भी तैनात किया गया है।

ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन के अलावा 16 वाम संगठन इस बिल के विरोध में सड़कों पर उतर चुके हैं। इन संगठनों से जुड़े छात्रों की पुलिस और जवानों से लगातार झड़प की ख़बरें भी सामने आ रही हैं। दिलचस्प बात तो ये है कि इतने बड़े स्तर पर हो रहे विरोध प्रदर्शन के बाद भी सरकार सदन में ये दावा कर रही है कि इस नागरिकता संशोधन बिल से देश के लोग ख़ुश हैं।

ग़ौरतलब है कि पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिकता संशोधन विधेयक का सबसे ज़्यादा विरोध हो रहा है। पूर्वोत्तर राज्यों के स्वदेशी लोगों का मानना है कि इस नागरिकता बिल के ज़रिए जिन शरणार्थियों को नागरिकता मिलेगी। उनसे उनकी पहचान, भाषा और संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी।

पूर्वोत्तर राज्यों के मूल निवासियों का मानना है कि इस बिल के आते ही वे अपने ही राज्य में अल्पसंख्यक बन जाएंगे और इस बिल से उनकी पहचान और आजीविका पर खतरा मंडराने लगेगा।

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