8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में नोटबंदी का ऐलान किया था। इस ऐलान के बाद 500 और 1000 के पुराने नोट का चलन बंद कर दिया गया था। मोदी ने इसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए में अच्छा बताया था।

जहां कुछ लोगों ने इस कदम का स्वागत किया था, वहीं एक बड़ा तबका लगातार इसका विरोध कर रहा था। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में नोटबंदी को लेकर एक बड़ा खुलासा किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2016-17 में 88 लाख करदाताओं (Taxpayers) की पहचान ‘स्टॉप फाइलर’ के रूप में हुई है। 2015-16 में स्टॉप फाइलरों की संख्या 8.56 लाख थी, नोटबंदी के बाद 2016-17 में ये आंकड़ा 10 गुना बढ़कर 88.04 लाख हो गई। पिछले दो दशक में स्टॉप फाइलरों की संख्या में ये सबसे बड़ा उछाल है।

अब सवाल उठता है कि ‘स्टॉप फाइलर’ कौन कहलता है? तो जवाब है- ‘स्टॉप फाइलर’ उन करदाताओं को कहते हैं जिन्होंने पिछले वित्तीय वर्षों में रिटर्न दाखिल किया था, लेकिन वर्तमान वर्ष में ऐसा नहीं किया। इनमें ऐसे करदाता शामिल नहीं हैं जिनका निधन हो चुका है या जिनके पैन कार्ड रद्द कर दिए गए हैं।

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एक टैक्स अधिकारी ने बताया है कि आमतौर पर ‘स्टॉप फाइलर’ की संख्या कंप्लायंस और एनफोर्समेंट गैप के दर्शाती है, जिसे ‘कर’ प्रशासन लागू करने में विफल रहा है। लेकिन 2016-17 में ‘स्टॉप फाइलर’ की संख्या में वृद्धि के लिए कंप्लायंस में आए अचानक बदलाव को अकेला ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। बीते कुछ वर्ष के दौरान आय में गिरावट या नौकरियों में कमी के चलते ये वृद्धि आ सकती है।

नोटेबंदी के दौरान मोदी सरकार ने दावा किया था कि इस कदम से अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा और आतंकवाद के वित्तपोषण के लिए अवैध और नकली नकदी के उपयोग में कमी आएगी।

2016-17 टैक्स डाटा 33 लाख से अधिक टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती) कटौतीकर्ताओं की तेज गिरावट दिखाता है, जिन्होंने अतीत में रिटर्न दाखिल नहीं किया था। इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि जिन व्यक्तियों ने पिछले वर्ष में कुछ भी लेन-देन किए थे उन्होंने इस वर्ष के दौरान ऐसा नहीं किया। आर्थिक गिरावट में इसे भी एक कारण समझा जा सकता है।

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याद होगा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इन पांच सालों में लाए गए भिन्न आर्थिक सुधारों का हवाला देते हुए कहा था कि प्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या मौजूदा सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान बढ़कर 7.6 करोड़ हो सकती है।

उन्हें विश्वास है कि हर साल 15-20 प्रतिशत टैक्स कलेक्शन बढ़ेगा। उन्होंने प्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या में वृद्धि के लिए सरकार की पहल जैसे नोटबंदी, अर्थव्यवस्था का औपचारिककरण, टेक्नोलोग्य का उपयोग और लेनदेन का पता लगाने की क्षमता को बढ़ाने का श्रेय दिया था।

नोटेबंदी के बाद टैक्स देने वालों की संख्या बढ़ी या कम हुई इसको लेकर मोदी खुद डांवाडोल थे। उन्होंने हर बार अलग-अलग आंकड़े बताए- 56 लाख, 5.4 लाख, 91 लाख और 33 लाख। जिसके बाद खुद अरुण जेटली को सफाई देने आगे आना पड़ा था। प्रेस रिलीज़ जारी की।

सफाई में उन्होंने लिखा कि मोदी ने जो आंकड़े बताए हैं वो ‘विभिन्न अवधि और विभिन्न प्रकार के करदाता’ के लिए हैं। मोदी सरकार खुद नहीं जानती कि नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधार लाने के क्या फायदे या नुक्सान हुए हैं। उनके द्वारा किये गए तमाम वादे झूठे साबित हो रहे हैं।

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