फाइल फोटो

ऐसे समय जब देश की आर्थिक स्थिति पर देश की सरकार की ओर से गंभीर ध्यान दिये जाने की जरूरत है, भारत ऐसी स्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकता जिसमें नागरिकों और सरकार के बीच सड़कों पर टकराव हो। ना ही ऐसी स्थिति वांछित है जिसमें बहुसंख्यक राज्य सरकारें एनपीआर या एनआरआईसी लागू करने को तैयार नहीं हैं।

जिससे केंद्र और राज्य के संबंधों में एक गतिरोध उत्पन्न हो। ये बयान एक पत्र के जरिए आया है जिसे दिल्ली के तत्कालीन कैबिनेट सचिव के एम चंद्रशेखर, पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला और पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग का नाम भी शामिल हैं।

दरअसल नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर मचे बवाल पर अब 106  रिटायर्ड नौकरशाहों ने मोदी सरकार को पत्र लिखा है। सभी नौकरशाहों ने इन कानून की वैधता पर सवाल उठाए हैं, पत्र में संवैधानिक वैधता पर गंभीर आपत्तियां जताई हैं।

पत्र में इस बात को लेकर पर जोर दिया गया है कि मोदी सरकार विदेशी (न्यायाधिकरण) संशोधन आदेश, 2019 के साथ ही डिटेंशन कैंप निर्माण के सभी निर्देश वापस ले और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), 2019 को रद्द करे।

पत्र में इस बात का ज़िक्र किया है कि सीएए के प्रावधानों के साथ ही पिछले कुछ वर्षों से इस सरकार के उच्च स्तरों से आक्रामक बयानों ने देश के मुसलमानों के बीच गहरी बेचैनी पैदा की है, जो पहले से ही ‘लव जिहाद’, मवेशी तस्करी और गोमांस सेवन जैसे आरोपों से जुड़े मुद्दों को लेकर भेदभाव और हमलों का सामना कर रहे हैं।

पत्र में कहा गया कि हाल के दिनों में मुस्लिम समुदाय को उन राज्यों में पुलिस कार्रवाई का सामना करना पड़ा है जहां स्थानीय पुलिस केंद्र में सत्ताधारी दल द्वारा नियंत्रित है। यह इस व्यापक आशंका को और मजबूत करता है कि एनपीआर एनआरसी कवायद का प्रयोग विशिष्ट समुदायों और व्यक्तियों को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है।

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