ऐसा लगता है जैसे सच में भारत में लोकतंत्र अब कुछ दिन का मेहमान रह गया है। जब चुनाव आयोग जैसी संस्था निष्पक्षता त्याग कर किसी दल विशेष को जीताने पर उतारु हो जाए तो फिर क्या बाकी रह जाता है?
पिछले कुछ दिनों से चुनाव आयोग जिस प्रकार के कारनामे कर रहा है, उससे देश का लोकतंत्र समर्थक वर्ग काफी गुस्से में है।
वैसे तो अभी चल रहे 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग की कई हरकतें संदिग्ध पाई गई हैं लेकिन असम में जो हुआ है, वो बताने के लिए काफी है कि भारत में जो चुनाव हो रहे हैं, उसमें एक पार्टी को हराने और एक पार्टी को जीताने के लिए तिकड़म किए जा रहे हैं। असम में इस बार चुनाव आयोग की बेईमानी पकड़ में आ गई है.
मामला असम के दीमा हसाओ जिले का है। यहां के एक पोलिंग स्टेशन पर बड़ी बेईमानी का पर्दाफाश हुआ है।
दरअसल इस बूथ पर टोटल 90 वोटर हैं लेकिन यहां पर 181 वोट पड़े हैं। यह पोलिंग स्टेशन हाफलोंग विधानसभा क्षेत्र में है। इस क्षेत्र में वोटिंग दूसरे चरण में हुई थी।
मालूम हो कि हाफलोंग विधानसभा क्षेत्र में लगभग 74 प्रतिशत वोटिंग हुई थी।
Sector Officer, Presiding Officer and 3 others suspended for dereliction of duty for allowing 181 electors to cast vote against 90 electors as per valid electoral roll at polling station number 107-A Khothlir LP School in Haflong Assembly constituency: CEO Assam
— ANI (@ANI) April 5, 2021
वहीं मामले का खुलासा होने के बाद जिला निर्वाचन अधिकारी ने पोलिंग स्टेशन के 5 अधिकारियों एवं कर्मचारियों को सस्पेंड कर दिया है और इस पोलिंग स्टेशन पर दोबारा मतदान का प्रस्ताव दिया है। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक दोबारा मतदान के प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी है।
जिस प्रकार से असम में भाजपा को चुनाव जिताने के लिए चुनाव आयोग तरह तरह के हथकंड़ों का इस्तेमाल कर रहा है, वो पूरा देश देख रहा है।
भाजपा प्रत्याशी की गाड़ी से ईवीएम पकड़ी जाती है और चुनाव आयोग छोटे छोटेे कर्मचारियों पर कार्रवाई कर लोगों की आंखों पर पर्दा डालने का काम करती है।
जिस सीट पर 90 वोटर हो और वहां पर 181 लोग वोटिंग कर दें, इस पर चुनाव आयोग का तर्क सुनकर आपको हंसी भी आएगी और गुस्सा भी छूटेगा।
चुनाव आयोग का कहना है कि हमारे पास 90 लोगों की मतदाता सूची थी लेकिन स्थानीय ग्राम प्रधान ने हमें 181 लोगों की मतदाता सूची थमा दी। चुनाव आयोग के पास यही हास्यास्पद बहाना बचा था।
चुनाव, चुनाव आयोग की मतदाता सूची से होता है या ग्राम प्रधान की मतदाता सूची से?
पूरा देश इन घटनाओं को देखकर कह रहा है, चुनाव आयोग ने भारत के लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा कर रख दी। कुछ दिन बाद लोग कहेंगे कि भारत में लोकतंत्र हुआ करता था।