23 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 15 राज्यों के 117 सीटों पर मतदान हुए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस चरण में चुनाव लड़ रहे 21% उम्मीदवारों के ऊपर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं।

ये आंकड़ा चौकाने वाला है। तमाम राजनीतिक दव दावा करते हैं कि अगर वो सत्ता में आए तो आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। लेकिन जब खुद की पार्टी के नेताओं पर ही आपराधिक मामले दर्ज हो तो उनके ये दावे संदिग्ध लगने लगते हैं।

सभी दल देते हैं आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को टिकट

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने तीसरे चरण में चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के एफिडेविट का आकलन किया। आकलन के निष्कर्ष से पता चला है कि कुल उम्मीदवारों में से 21 % यानी 340 पर आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं।

इसमें से 14% (230) उम्मीदवारों के खिलाफ तो गंभीर आपराधिक मामलें दर्ज हैं। इन 230 नेताओं में से 14 ने ये कबूल किया है कि उनको पहले भी कुछ अपराधी मामलों में दोषी पाए गए हैं।

कांग्रेस, भाजपा और शिवसेना के 27% उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं दूसरी ओर TMC के 44%, सपा के 40% और बसपा के 10% उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

लेकिन इन आंकड़ों का खेल भी समझना होगा। कांग्रेस के 90 में से 24 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, इसलिए इसका प्रतिशत निकलता है 27।

इसी तरह भाजपा के 97 में से 26 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं इसलिए इसका प्रतिशत भी हुआ 27। वहीं दूसरी ओर सपा के केवल 10 उम्मीदवारों में से 4 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं इसलिए इसका प्रतिशत हुआ 40% जो देखने में तो और कांग्रेस से ज़्यादा लगता है पर गिनती में कम है।

इसी तरह बसपा के 92 में से केवल 9 उम्मीदवारों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज है और इस कारण इसका प्रतिशत है 10।

यूं तो देश में सबको चुनाव लड़ने का अधिकार है लेकिन अगर कोई दोषी ठहराया गया हो तो उसे सजा की तारीख के 6 साल बाद तक चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होता। ऐसा तभी होता है जब उन्हें 2 या उससे ज्यादा सालों के लिए सजा मिली हो।

ऐसे में जो भी दल दूसरे दल के अपराधी नेताओं पर सवाल उठाते हैं उन्हें अपने दल के अंदर भी इसका ख्याल रखना चाहिए।

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