हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छोटे एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) को लोन का तथाकथित तोहफा दिया है। लेकिन क्या ये तोहफा है या अपने द्वारा की गई बर्बादी की भरपाई की कोशिश।

पीएम मोदी ने हाल ही में एक योजना का ऐलान करते हुए कहा है कि अब एमएसएमई को 59 मिनट में लोन मिल जाएगा। ये लोन की योजना ख़ास एमएसएमई के लिए लाइ गई है। ये योजना जीएसटी में रजिस्टर्ड एमएसएमई के लिए है और लोन पर 2 प्रतिशत ब्याज की सब्सिडी भी दी जाएगी।

लेकिन इस घोषणा के दौरान पीएम मोदी ने ये नहीं बताया कि उनके आर्थिक कदमों ने इस क्षेत्र को कितना नुकसान पहुँचाया है। नोटबंदी और जीएसटी ने इस क्षेत्र को बर्बादी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।

नोटबंदी के कारण हज़ारों छोटे एवं मध्यम उद्योग बंद हुए। लाखों की संख्यां में मजदूर बेरोजगार हुए। इस सब का नुकसान एमएसएमई को हुआ।

इस बात का आधार वर्ष 2017-18 में आई कई रिपोर्टें हैं। इंडिया रेटिंग्स ने सितम्बर 2018, में रिपोर्ट में बताया कि छोटी कंपनियों, लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमियों और व्यक्तिगत, खुदरा कर्जों का हिस्सा एनपीए में बढ़ा है।

वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 2017- 18 में इनमें वृद्धि हुई है। मतलब के छोटे व्यापारी या छोटे व्यवसाय जो अब तक समय रहते अपने कर्ज की अदायगी कर रहे थे वो वर्ष 2017-18 में पैसा नहीं लौटा पा रहे हैं।

इन लोगों का प्रतिशत 2017- 18 में बढ़कर 40% हो गया जिन्होंने पांच करोड़ रुपये तक के कर्जों में 31 से 60 दिन की अवधि के दौरान कर्ज की किस्त का भुगतान नहीं किया। जबकि एक साल पहले ऐसे लोग 29% थे।

वहीं, स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक (एसआईडीबी) ने मार्च 2018, की रिपोर्ट में बताया कि एमएसएमई क्षेत्र का एनपीए बढ़कर 81000 करोड़ रुपए का हो गया है।

सितम्बर 2018, में ही आरबीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में साफ़ बताया कि एमएसएमई को जीएसटी से कितना बड़ा नुकसान हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, जीएसटी लागू होने से पहले एमएसएमई क्षेत्र में 370 बिलियन डॉलर की मांग थी जो जीएसटी लागू होने के बाद 230 बिलियन डॉलर रह गई। यानि 9 लाख करोड़ रुपए का नुकसान।

ये सभी नुकसान इस क्षेत्र को केवल एक साल के दौरान ही हुआ। और इसी दौरान बाज़ार में जीएसटी लागू हुई और नवम्बर 2016, में नोटबंदी का झटका लगा।

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