लालकृष्ण आडवाणी ने बीजेपी के स्थापना दिवस के पूर्व लिखे अपने लेख के जरीए बातों-बातों में ही देश के कई संस्थानों को ईमानदारी से काम करने और उत्तरदायित्वों को सही से निर्वहन करने की नसीहत दे डाली है।

हांलाकि आडवाणी ने किसी संस्थान विशेष का नाम नहीं लिया है, लेकिन अपने लेख में जो लिखा है वह वर्तमान भारतीय लोकतंत्र पर मंडरा रहे खतरों को तरफ एक इशारा है।

आडवानी ने अपने लेख में जिस प्रकार देश के लोकतंत्र में सभी जातियों की भागीदारी, बीजेपी के सिद्धानों के विरोधियों को देशद्रोही नहीं कहने, बीजेपी के स्थापना के समय पहले देश फिर पार्टी और अंत में खुद को स्थान देने का जो जिक्र किया है।

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वहीं यदि आप आडवानी के लेख का अंतिम पेज पढ़कर यह आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि देश के कुछ संस्थान निष्पक्षता से अपना काम नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने ट्रू, एलेक्शन की बात कही है साथ ही लोकतंत्र के पर्व को सफल बनाने के लिए राजनीतिक दलों, मीडिया और संवैधानिक संस्थानों की चर्चा की है।

इस लेख से कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि भारतीय लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति काफी चिंताजनक है, क्योंकि कोई भी आदमी लाईफ जैकेट की बात तभी करता है जब उसको नदी में डूबने का खतरा मंडरा रहा होता है।

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अगर देखा जाए तो आडवाणी का यह लेख कुछ समाज को विभाजित करने की बात करने वाली कुछ राजनीति पार्टियों, मीडिया की एक पक्षीय रिपोर्टिंग रवैये और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठ रहे बार-बार सवाल के प्रति नशीहत है।

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