सामाजिक कार्यकर्ता और वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) की निष्पक्षता पिछले कुछ वर्षों में सवालों के घेरे में आ गई है.
भूषण ने आरोप लगाया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में है और सरकार के खिलाफ बोलने वाले लोगों को राजद्रोह तथा अन्य गंभीर आरोपों का सामना करना पड़ता है तथा उन्हें वर्षों तक जमानत नहीं मिल पाती.
पूर्व में ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं जहां निर्वाचन आयोग सत्तारूढ़ पार्टी के नियम उल्लंघन पर चुप रही है. इसके बरक्स वह विपक्ष की किसी गतिविधि पर तुरंत हरकत में आई है.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ पार्टी के बड़े नेताओं द्वारा चुनाव संहिता के उल्लंघन पर चुप्पी साधे रहता है जबकि ऐसे मामलों में विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ तेज़ी से कार्रवाई करता है.
उन्होंने दावा किया कि आयोग सरकार की सुविधा को ध्यान में रखते हुए चुनावों का कार्यक्रम बनाता है.
उन्होंने कहा, ‘टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के बाद कई वर्षों तक हमने देखा कि चुनाव आयोग बहुत निष्पक्ष और पारदर्शी था. लेकिन पिछले छह से सात वर्ष में उसकी निष्पक्षता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया है.’
उन्होंने आज के दौर में मीडिया की साख पर भी प्रश्न उठाया. वर्तमान केंद्र सरकार के आने के बाद से मीडिया पर सरकार अपना नियंत्रण बना चुकी है.
इसके साथ ही साथ आज पुलिस एजेंसियां, प्रवर्तन निदेशालय(ईडी), राष्ट्रीय अन्वेषक अभिकरण(एनआईए) और आयकर विभाग जैसी एजेंसियां पर भी सरकार का कंट्रोल है. जिसका इस्तेमाल वह अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए कर रही. यह लोकतंत्र के लिए खतरा है.