दलित, पिछड़े और आदिवासियों के आरक्षण को खत्म करने वाले ’13 प्वाइंट रोस्टर’ के खिलाफ तेजस्वी यादव के बाद अब अखिलेश यादव भी हमलावर हो चुके हैं।
उन्होंने कहा है कि 2019 का चुनाव जीतकर युनिवर्सिटी रोस्टर और आरक्षण हम अपने हिसाब से तय करेंगे। साथ ही दलितों पिछड़ों को संदेश दिया है कि ‘आपको आपका हक वही दे सकते हैं जो आपके हैं।’
गौरतलब है कि सवर्ण आरक्षण के लिए तत्परता दिखाने वाली मोदी सरकार दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के आरक्षण का अधिकार छीनने वाले 13 प्वाइंट रोस्टर का पुरजोर विरोध नहीं कर रही है, जिससे तमाम सामाजिक संगठन और राजनीतिक दल नाराज हैं। उनका कहना है कि जब सवर्णों को आरक्षण देने की बात आई तो कुछ ही घंटों के अंदर सारी बाधाओं को पार करते हुए इस जातिवादी सरकार ने तमाम उपाय किए लेकिन जब दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के आरक्षण पर हमला हो रहा है तब ये सरकार सुस्ती दिखा रही है।
विश्वविद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति में जिस तरह से आरक्षण को खत्म किया जा रहा है उसका विरोध करते हुए आरजेडी की तरफ से तेजस्वी यादव पहले ही हमलावर रहे हैं लेकिन अब अखिलेश यादव का ये ट्वीट इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि जल्द ही ये बड़ा राष्ट्रीय मुद्दा बनने वाला है।
अखिलेश यादव ट्वीट करते हैं – 2019 का लक्ष्य स्पष्ट है: भाजपा हटाओ, उम्मीद जगाओ। चुनाव जीत कर रोस्टर, आरक्षण, फ़सलों के दाम, इंकम गारंटी और सब ही मुद्दे आपस में तय करें गे। लेकिन यह तब सम्भव है जब लक्ष्य सत्य और संविधान की सुरक्षा होगा ना कि सत्ता की लालच। आप को आप का हक़ वही दे सकते हैं जो आप के हैं
2019 का लक्ष्य स्पष्ट है:
भाजपा हटाओ, उम्मीद जगाओ।
चुनाव जीत कर रोस्टर, आरक्षण, फ़सलों के दाम, इंकम गारंटी और सब ही मुद्दे आपस में तय करें गे। लेकिन यह तब सम्भव है जब लक्ष्य सत्य और संविधान की सुरक्षा होगा ना कि सत्ता की लालच।
आप को आप का हक़ वही दे सकते हैं जो आप के हैं!
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) January 29, 2019
इसके पहले तमाम सामाजिक संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता अखिलेश यादव की आलोचना कर रहे थे कि वो अपना रुख स्पष्ट करें कि 13 पॉइंट रोस्टर मामले पर वह किस ओर हैं।
भले ही अखिलेश ने अभी कोई बड़ा ऐलान नहीं किया है लेकिन उन्होंने अपना रुख साफ कर दिया है कि वह आरक्षण विरोधी रोस्टर के साथ नहीं हैं।
कुछ दिन पहले अखिलेश यादव ने कहा था ‘गंगा मैया की कसम अगर हम सत्ता में आए तो जातिगत जनगणना सार्वजनिक करेंगे’
अगर ऐसा होता है तो देश के दलितों और पिछड़ों की लिए बड़ी राहत की बात होगी क्योंकि जब एकबार आबादी का अनुपात सार्वजनिक हो जाएगा तब देश के तमाम संसाधनों और नौकरियों में हिस्सेदारी की मांग बढ़ेगी और सरकारों पर दबाव पड़ेगा कि पिछड़ी आबादी को ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व दें।