विश्वविद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति में जिस तरह से आरक्षण को खत्म किया जा रहा है उसका विरोध करते हुए आरजेडी की तरफ से तेजस्वी यादव पहले ही हमलावर रहे हैं लेकिन अब अखिलेश यादव ने भी ट्वीट किया है.

यानी अब ये मुद्दा राष्ट्रीय पटल पर तेजी से छा जाने वाला है

अखिलेश यादव ने लिखा – 2019 का लक्ष्य स्पष्ट है: भाजपा हटाओ, उम्मीद जगाओ। चुनाव जीत कर रोस्टर, आरक्षण, फ़सलों के दाम, इंकम गारंटी और सब ही मुद्दे आपस में तय करें गे। लेकिन यह तब सम्भव है जब लक्ष्य सत्य और संविधान की सुरक्षा होगा ना कि सत्ता की लालच। आप को आप का हक़ वही दे सकते हैं जो आप के हैं

दलित, पिछड़े और आदिवासियों के आरक्षण को खत्म करने वाले ’13 प्वाइंट रोस्टर’ के खिलाफ तेजस्वी यादव के बाद अब अखिलेश यादव भी हमलावर हो चुके हैं।

उन्होंने कहा है कि 2019 का चुनाव जीतकर युनिवर्सिटी रोस्टर और आरक्षण हम अपने हिसाब से तय करेंगे। साथ ही दलितों पिछड़ों को संदेश दिया है कि ‘आपको आपका हक वही दे सकते हैं जो आपके हैं।’

इसपर प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं-

‘आरक्षण विरोधी रोस्टर के ख़िलाफ़ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का ट्विट आ गया।

अब किस बात का इंतज़ार है समाजवादियों? घेर लो 31 जनवरी को दिल्ली।’

इस ट्वीट के जरिए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने 31 जनवरी के उस विरोध प्रदर्शन को सफल बनाने की अपील की है जिसमें सामजिक न्याय की बात करने वाले तमाम संगठन भाग लेने वाले हैं। अगर ये प्रदर्शन सफल रहा तो मोदी सरकार पर दबाव बढ़ेगा कि आर्डिनेंस ले आकर आरक्षण विरोधी रोस्टर पर रोक लगाएं।

जिम्मेदारी से भाग रही है मोदी सरकार 

गौरतलब है कि सवर्ण आरक्षण के लिए तत्परता दिखाने वाली मोदी सरकार दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के आरक्षण का अधिकार छीनने वाले 13 पॉइंट रोस्टर का पुरजोर विरोध नहीं कर रही है, जिससे तमाम सामाजिक संगठन और राजनीतिक दल नाराज हैं। उनका कहना है कि जब सवर्णों को आरक्षण देने की बात आई तो कुछ ही घंटों के अंदर सारी बाधाओं को पार करते हुए इस जातिवादी सरकार ने तमाम उपाय किए लेकिन जब दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के आरक्षण पर हमला हो रहा है तब ये सरकार सुस्ती दिखा रही है।

जातिगत जनगणना पर भी प्रण कर चुके हैं अखिलेश 

कुछ दिन पहले अखिलेश यादव ने कहा था ‘गंगा मैया की कसम अगर हम सत्ता में आए तो जातिगत जनगणना सार्वजनिक करेंगे’

अगर ऐसा होता है तो देश के दलितों और पिछड़ों की लिए बड़ी राहत की बात होगी क्योंकि जब एकबार आबादी का अनुपात सार्वजनिक हो जाएगा तब देश के तमाम संसाधनों और नौकरियों में हिस्सेदारी की मांग बढ़ेगी और सरकारों पर दबाव पड़ेगा कि पिछड़ी आबादी को ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व दें।

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