भारतीय मीडिया के एक बड़े हिस्से से निष्पक्षता की उम्मीद अब बेईमानी होगी। सरकार के खर्च से चलने वाले मीडिया संस्थान सरकार से सवाल करेंगे, ये ख्वाहिश ही मासूमियत की पराकाष्ठा है।

अब निष्पक्षता ना सही लेकिन तथ्यात्मक रूप से सही सूचना का आग्रह तो बनता ही है। पर… अफसोस सत्ता की दलाली में लिप्त अखबार और न्यूज चैनल तथ्यों को भी मनमुताबिक तोड़ दे रहे हैं।

इसका ताजा उदाहरण अमर उजाला है। अमर उजाला देश का चौथा सबसे ज्यादा पढ़े जाने हिन्दी अखबार है। अमल उजाला ने जेवर एयरपोर्ट को लेकर दिसंबर 2019 में एक खबर प्रकाशित की। खबर के मुताबिक एयरपोर्ट के निर्माण से सात लाख लोगों को रोजगार मिलने था।

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8, नवंबर 2021 को अमर उजाला ने जेवर एयरपोर्ट से मिलने वाले रोजगार का जिक्र करते हुए एक और खबर प्रकाशित की। इस खबर में रोजगार की संख्या सात लाख से घटकर साढ़े पांच लाख हो गई।

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फिर आया 24, नवंबर 2021, इसके एक दिन बाद यानी 25 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जेवर एयरपोर्ट का शिलान्यास करने वाले थे। अमर उजाला ने 24 नवंबर को जेवर एयरपोर्ट से मिलने वाले रोजगार की संख्या घटाकर एक लाख कर दी।

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कुल मिलाकर बात ये है कि दिसंबर 2019 से नवंबर 2021 आते-आते अमर उजाला ने जेवर एयरपोर्ट से मिलने वाले रोजगार की संख्या 7 गुणा कम कर दी। आखिर ये 7 गुणा रोजगार की गिरावट हुई कैसे? अमर उजाला ने सात लाख और साढ़े पांच लाखा आंकड़ा कहां से लिखा था?

दिलचस्प ये है कि इस खेल में सिर्फ अमर उजाला नहीं है। देश का तीसरा सबसे ज्यादा पढ़े जाने हिन्दी अखबार हिन्दुस्तान भी शामिल है। हिन्दुस्तान ने 25, नवंबर को लिखा, जेवर एयरपोर्ट से यूपी को मिलेगी नई उड़ान, दो लाख लोगों मिलेगा रोजगार, बदल सकता है चुनावी समीकरण

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हिन्दुस्तान अखबार का फ्रॉड अमर उजाला से बड़ा इसलिए भी है क्योंकि हिन्दुस्तान ने जिस रोज ‘दो लाख रोजगार’ का झूठ फैलाया उससे एक रोज पहले सरकारी आंकड़ा पब्लिक हो चुका था।

उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से रोजगार का संभावित आंकड़ा बताते हुए लिखा था, ”एयरपोर्ट वर्ष 2024 तक होगा क्रियाशील, 01 लाख से अधिक लोगों को नौकरी एवं रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे”

 

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