किसान आन्दोलन के दौरान कई बार किसानों ने मीडिया के एक हिस्से को गोदी मीडिया कहकर संबोधित किया। “गोदी मीडिया, वापस जाओ” के नारे तो लगभग हर प्रमुख कार्यक्रम के दौरान लगें। एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई, जिसमें किसानों की तख़्ती पर लिखा था – Don’t Cover us . You Are Fake Media. #GodiMedia. इस तख़्ती पर जी-न्यूज, आज तक और रिपब्लिक भारत का लोगो भी लगा था। “गोदी मीडिया”, अर्थात वो मीडिया संस्थान जो मोदी सरकार की तथाकथित “गोद” में बैठे हुए हैं।

सरकार की गोद बैठकर आम आवाम को गुमराह करने वाली इन मीडिया संस्थानों से किसानों की नाराजगी जायज भी है। किसान आन्दोलन के दौरान तो इन मीडिया संस्थानों ने किसानों को खालिस्तानी, आतंकवादी, नक्सली, माओवादी, देशविरोधी, टुकड़े-टुकड़े गैंग और ना जाने क्या क्या कहा। किसान आन्दोलन को बदनाम करने के लिए जो भी किया जा सकता था, इन मीडिया संस्थानों ने किया।

हालांकि इनकी मेहनत पर पानी उस वक्त फिर गई जब गत शुक्रवार को गुरु नानक जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया और तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। मोदी समर्थक इन पत्रकारों में भारी निराशा फैल गई, सोशल मीडिया पर रुदाली होने लगी।

प्रधानमंत्री मोदी के ऐलान के बाद से लगने लगा था कि किसान आन्दोलन के प्रति मीडिया का रवैया बदलेगा। लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को आज एक साल पूरे हो गया है। इस मौके पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत से ज़ी हिंदुस्तान के रिपोर्टर ने बातचीत की, जिसका वीडियो ज़ी हिंदुस्तान ने अपने ट्विटर पर शेयर किया है।

इस वीडियो में रिपोर्टर और टिकैत की बातचीत तो नॉर्मल है, लेकिन नीचे चल रहा टिकर बेहद ही जहरीला और नफरती है। ज़ी हिंदुस्तान किसान आन्दोलन को अय्याशों का अड्डा, बंधक गैंग और हुड़दंगी लिख रहा है। किसानों को नकली किसान बता रहा है। ट्विटर पर मौजूद इस ढाई मिनट की वीडियो में किसानों के लिए और किसान आन्दोलन के लिए जितने अपशब्द लिखे जा सकते थे, लिख दिया गया है।

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