Tanya Yadav

भारत के संविधान निर्माता और पहले कानून मंत्री डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने इस देश की महिलाओं को कानून के ज़रिए अधिकार दिलवाया या, यूँ कहें उन्होनें महिलाओं को सही मायने में आज़ाद करवाया। परिवार में बराबर का हक़दार बनाया, हर क्षेत्र में रोक-टोक के बिना आगे बढ़ने का अधिकार दिलवाया, खुद भेद-भाव और छुआछूत झेल रहे आंबेडकर ने इस देश की आधी आबादी को कुरीतियों से क़ानूनी तौर पर मुक्त होने का मार्ग दिखाया।

आज बाबा साहब अंबेडकर को किसी परिचय की ज़रूरत नहीं है, उनका नाम ही अपने आप में काफी है, उनका जीवन दर्शन ही अपने आप में एक प्रेरणादायक कहानी है।

14 अप्रैल को बाबासाहब की जयंती मनाई जाती है, इस देश की महिलाओं को उनके अधिकार दिलवाने वाले आइकॉन की जयंती मनाई जाती है। किसी समाज की प्रगति को उसकी महिलाओं की प्रगति से आंकने वाले भारत रत्न डॉक्टर बीआर अंबेडकर ने महिलाओं के विकास के लिए अपने जीवन में कई लड़ाइयां लड़ीं, महिलाओं को अधिकार दिलवाने के लिए उन्होंने पूरे समाज से दुश्मनी तक मोल ले ली।

उदाहरण के तौर पर, उन्होनें महिला-विरोधी और जातिवादी मनुस्मृति को जला दिया और इसके लिए एक वर्ग आज तक उनसे बेइंतहा नफरत करता है। उन्होंने उस मनुस्मृति को जलाया जिसके पांचवें अध्याय के एक सौ अड़तालिस वे श्लोक में लिखा है- “एक लड़की हमेशा अपने पिता के संरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका संरक्षक होना चाहिए, पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर रहना चाहिए, किसी भी स्थिति में एक महिला आज़ाद नहीं होनी चाहिए।” बाबा साहब अंबेडकर महिलाओं को इसी कथित संरक्षण और निर्भरता से आज़ाद करना चाहते थे, वो उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे।

उन्होनें केवल जाति का विनाश नहीं चाहा साथ ही साथ पितृसत्ता का भी विनाश चाहा। किसी भी ज्ञात फेमिनिस्ट से कहीं ज़्यादा फेमिनिस्ट थे डॉक्टर अंबेडकर,वो हर मुद्दे को महिला अधिकार के चश्मे से देखा करते थे। अंबेडकर ने उन्नीस सौ इक्यावन में संसद में ‘हिन्दू कोड बिल’ पेश किया जो महिलाओं को वो सभी अधिकार दे सकता था जिससे उन्हें वंचित रखा गया था। इस बिल के कानून बनने से हिन्दू महिलाओं को कईं अधिकार मिल जाते, जैसे – तलाक दे पाना, विधवा महिला का दोबारा विवाह हो पाना, बाल विवाह पर प्रतिबंध लग जाना, अंतर्-जातीय विवाह कर पाना आदि। अंबेडकर का मानना था कि ये सभी कुरीतियां महिलाओं पर इस जातिवादी-पितृसत्तामक समाज की मार हैं।

उन्होनें कोलंबिया यूनिवर्सिटी में 1916 में एक पेपर पेश किया जो इन्हीं सब मुद्दों को नैतिकता के तराज़ू पर तौलता है । अंबेडकर कहा करते थे कि जातिवाद की विशेषता है कि लोग अपनी ही जाति में विवाह करें। इसे तोड़ने के लिए अंतरजातीय विवाह कारगर हथियार है। डॉ. मुख्तयार सिंह अपने एक लेख में बताते हैं कि अंबेडकर भारत में जाति और महिलाओं समस्या को जोड़कर देखा करते थे । अंबेडकर का तर्क था कि कम उम्र में शादी करवा देना, विधवा का दोबारा विवाह न होने देना, महिला द्वारा तलाक न दे पाना…ये सब समाज में जाति व्यववस्था बनाए रखने के लिए हैं। महिला अगर अपने अधिकार जान जाएगी तो हो सकता है कि वो किसी दूसरी जाति के पुरुष से प्रेम कर ले और यहीं से जाति-व्यवस्था का विनाश शुरू हो जाएगा।

लेकिन उस समय अंबेडकर की इस दूरदर्शिता को प्रोत्साहन नहीं मिला, और हिन्दू कोड बिल पास नहीं हो पाया। देश के पहले कानून मंत्री ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया यकीनन, बाबासाहब अंबेडकर ने वंचितों के सशक्तिकरण के लिए अपने जीवन में जितनी लड़ाइयां लड़ी, उनमें से ये सबसे बड़ी थी। क्योंकि इसमें विरोध करने वाली भी ज्यादातर महिलाएं थी। जातिवाद और धार्मिक उन्माद का शिकार तमाम सवर्ण महिलाएं थीं। गलती उनकी नहीं उस व्यवस्था की थी जिसके चलते उन्होंने अपने शोषकों को ही अपना उद्धारक समझ लिया था। बाबा साहब जैसे डॉक्टर की इस कड़वी दवाई को हानिकारक समझ लिया था।

अब महिलाओं के पास क़ानूनी तौर पर ये सभी अधिकार तो हैं, लेकिन इन अधिकारों को सबसे पहले समझने और समझाने वाले बाबा साहब नहीं है। अंबेडकर ने और भी कई तरीकों से महिलाओं को क़ानूनी अधिकार दिए। इनमें सबसे बड़ा अधिकार है हमारे देश का संविधान। जो किसी के भी साथ होने वाले लिंग आधारित भेद-भाव को गैर-क़ानूनी मानता है। सबको बराबरी और सम्मान का हक़ देता है।

आज देशभर की करोड़ों महिलाएं उन्हें याद करती हैं, हालांकि इतनी ही महिलाएं ना जाने कितने ठग बाबाओं को अपना गुरु मानती हैं, उनकी बेतुकी बातों में यकीन करती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं, आज जो करोड़ों पढ़ी लिखी और आज़ाद महिलाऐं दिख रही हैं, ना सिर्फ अपना घर बार चला रही हैं, सिस्टम और सरकार चला रही हैं उनकी इस तरक्की में बाबा साहेब ने बहुत बड़ा योगदान दिया है।

आंबेडकर कहा करते थे – “खोए हुए अधिकार…हड़पने वालों से निवेदन करके नहीं, बल्कि अथक संघर्ष से प्राप्त होते हैं।” महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए हर समय हर सदी में संघर्ष करते रहना होगा। साथ ही बाबा साहब के विचारों को पढ़ना होगा, समझना होगा, और हमेशा अमल करना होगा।

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