मोदी सरकार में धार्मिक कट्टरता और सांप्रदायिक नफरत तेज़ी से बढ़ी है। ‘रामनवमी’ के दिन भी देशभर से हिंसा की खबरें आती रहीं। कहीं मस्जिद के गेट पर भगवा झंडा लहराया जा रहा था, तो कहीं ईदगाह की गुंबद पर ऐसा करके एक धर्म-विशेष को टारगेट किया जा रहा था। हाल की घटना, हैदराबाद विश्विद्यालय की है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर के अनुसार, कैंपस परिसर में रामनवमी के दिन एक पत्थर को ‘राम मंदिर’ में बदल दिया गया। छात्र-छात्राओं ने इसका विरोध भी किया। छात्र संगठनों का आरोप है कि ऐसा करके विश्वविद्यालय के ‘भगवाकरण’ की कोशिश की जा रही है। कठघरे में दक्षिणपंथी छात्र हैं।

आंबेडकर स्टूडेंट यूनियन (ASA) और स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) का कहना है कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी) के छात्रों ने ही परिसर में राम मंदिर बनाया है। उनका कहना है कि इसके चलते गैर-हिन्दू छात्रों की भावनाएं आहत हो सकती हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रविवार को पुरषों के हॉस्टल के पास के पत्थर को भगवा रंग से रंग दिया गया। कुछ ऐसा ही मुख्य वार्डन के ऑफिस के बाहर रखे पत्थरों के साथ भी किया गया। इसी के साथ यहाँ पर ‘भगवान राम’ की तस्वीरें और भगवा झंडे भी रख दिए गए।

यूँ तो एबीवीपी छात्रों ने सभी आरोपों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है, लेकिन इस सबसे एक नया विवाद शुरू हो गया है। हाल ही में कर्णाटक कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि स्कूलों में किसी भी तरह के धार्मिक प्रतीकों को पहनकर आना मना है। ऐसे में एक विश्विद्यालय में मंदिर होना भी अपने आप में संविधान विरोधी है। क्यूंकि सरकार और सरकारी संस्थानों द्वारा किसी धर्म-विशेष को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता।

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि रामनवमी के दिन देशभर में कानून को ताक पर रखकर तनावपूर्ण माहौल बनाया जा रहा है। कभी दिल्ली के जेएनयू में छात्र-छात्राओं पर मांसाहार खाने के लिए हमला हो रहा है, तो कहीं हैदराबाद में विश्विद्यालय में ही मंदिर बनाया जा रहा है।

ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल और भी बढ़ जाते हैं कि क्या उनके शासनकाल में एक खास विचारधारा के लोगों को अपराध करने की छूट मिल रही है?

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