साल 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह पर पॉलिसी परालिसिस यानी नीतिगत फ़ैसले करने में सक्षम नहीं होने का आरोप लगाकर उद्योग जगत की आँख का तारा बने पीएम मोदी जब देश का के पीएम बने तो व्यापार जगत के साथ आम लोगों को भी उनसे ज़बरदस्त तरीक़ से ये उम्मीद बनी थी कि वो अपनी नीतियों से देश को आर्थिक मज़बूती देंगे। जिससे भारत के नागरिकों की आर्थिक हालत सुधरेगी। लेकिन अफ़्सोस कि सच्चाई इससे उलट है।

सच्चाई ये है कि मोदी राज में अर्थव्यवस्था सबसे बुरे दौर से गुज़र रही है। और निवेश पिछले 14 सालों के मुक़ाबले सबसे निचले स्तर पर है।

इंडिया की आर्थिक हालत को लेकर सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के ताज़ा जारी आँकड़ो के मुताबिक़ दिसम्बर तिमाही (फ़ाईनेन्शियल इयर 2018-19) में नई परियोजनाओं से लेकर निवेश तक में बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। इतनी गिरावट कि ये पिछले 14 सालों में सबसे नीचे आ गई है।

14 सालों में निवेश में इतनी गिरावट नहीं आई थी। CMIE के आँकड़े बताते हैं कि, दिसम्बर तिमाही (अक्टूबर से लेकर दिसम्बर) अलग-अलग सरकारी और निजी कम्पनियों ने 1 लाख करोड़ रुपये की नई परियोजनाओं की घोषणा की।

यह सितम्बर तिमाही के मुक़ाबले 53 फ़ीसदी और दिसम्बर 2017 की तिमाही के मुक़ाबले 55 फ़ीसदी कम है।

आख़िरी बार दिसम्बर 2014 की तिमाही में सबसे ज़्यादा 6.4 लाख करोड़ रुपयों की नई परियोजनाओं की घोषणा की गई थी।

क्या होगा असर-

निवेश और नई परियोजनाओं की घोषणाओं में कमी का सीधा असर रोज़गार पर पड़ेगा। उद्योग-धंधे सुस्त होंगे और नए रोज़गार का सृजन मुश्किल होगा। ऐसे में बढ़ती बेरोज़गारी और बढ़ेगी।

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