बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव लगातार मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले को मीडिया में उठा रहे हैं। 19 फरवरी को भी तेजस्वी ने इस मामले को लेकर 25 मिनट का प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। इस दौरान तेजस्वी ने नीतीश कुमार पर कई आरोप लगाए।

तेजस्वी यादव का सीधा आरोप है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मामले में स्पष्ट रूप से संलिप्त हैं। तेजस्वी का कहना है कि अगर सीएम नीतीश का इससे कोई लेना देना नहीं था तो उन्होंने TISS की रिपोर्ट आने के दो महीनों तक ब्रजेश ठाकुर पर FIR क्यों नहीं होने दी?

राजद नेता का कहना है कि नीतीश कुमार ने पहले तो ब्रजेश ठाकुर को जेल जाने से बचाने का प्रयास किया। फिर जेल के अंदर मोबाइल समेत तमाम सुविधाएं उपल्बध कराई। इसके बाद बच्चियों को गायब किया गया। सीबीआई जांच से बचने की कोशिश की गई। अगर नीतीश कुमार सही हैं तो उन्हें CBI जांच का डर क्यों था?

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तेजस्वी यादव ने 25 मिनट प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से भी ममाले को उठाया। लेकिन बिहार की प्रिंट मीडिया में इस खबर को प्रमुखता से नहीं छापा गया है। राज्य के मुख्यमंत्री पर मुख्य विपक्षी दल के नेता ने इतने गंभीर आरोप लगाए लेकिन अखबार ने उसे जगह ही नहीं दी…

ज्यादतर मेनस्ट्रीम अखबार के बिहार एडिसन में इस खबर को प्रमुखता से नहीं छापा गया है। जबकि इन्हीं अखबारों में तेजस्वी यादव से जुड़ा बंगाल विवाद फोकस में है। आखिर क्या वजह है बिहार के अखबार नीतीश कुमार पर लगे आरोपों को नहीं छाप रहे हैं?

राजद समर्थकों का कहना है कि सत्ताधारी पार्टियों के संविदा पर रखे गए प्रवक्ताओं की छोटी-छोटी बातों को अखबार प्रमुखता से छाप रहा है। लेकिन बहुचर्चित शेल्टर होम कांड पर की गई 25 मिनट की प्रेस कॉन्फ्रेंस अधिकतर अखबारों की सुर्खियों से गायब है।

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अखबारों की इस रवैये को तेजस्वी यादव ने नमक का कर्ज चुकाना बताया है। उन्होंने ट्वीट किया है कि ‘विज्ञापन के रूप में खाए नीतीश कुमार के सरकारी नमक का क़र्ज़ा जो चुकाना है। एक-दो को छोड़कर किसी में इतनी नैतिक और सैद्धांतिक हिम्मत नहीं कि नीतीश कुमार के विरुद्ध उनके नाम से कोई ख़बर अख़बार में छाप दें। ख़ैर, हम तो फिर भी प्रार्थना करते है कि भगवान उन्हें और मुनाफ़ा व बरकत दें।’

राजद का तो सीधा आरोप है कि बिहार में पत्रकारिता का मूलमंत्र हो गया है। जो विज्ञापनदाता है वही पिता-माता है। सरकारी विज्ञापन बंद होने के डर से ज़्यादातर अख़बार नीतीश कुमार पर मुज़फ़्फ़रपुर बलात्कार कांड में CBI जाँच की ख़बर को दबा रहे है। बिहार मे प्रिंट पत्रकारिता अब तक के सबसे ख़राब दौर से गुज़र रही है।

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