
मध्यप्रदेश : भारतीय जनता पार्टी वंशवाद के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखरता से बोलने वाली पार्टी है। ये बात अलग है कि उसके सहयोगी दल अकाली दल और शिवसेना है जो अपनी पिता की राजनीति संभाल रहे हैं। बीजेपी हमेशा से परिवारवाद पर तीखें हमले बोलती रही है मगर मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में बीजेपी नेता अपने बच्चों को टिकट दिलवाने में सफल रहे है।
अब कुछ नाम जान लीजिए शिवपुरी से यशोधरा राजे को टिकट मिला है ये राजमाता सिंधिया की बेटी है। संबलगढ़ से सरला रावत जो विधायक मेहरबान सिंह रावत की बहू है। मंदसौर से वहपाल सिंह सिसोदिया विधायक किशोर सिंह सिसोदिया के बेटे है। बीजेपी की उम्मीदवारों लिस्ट 193 की लिस्ट में 39 टिकट तो बेटे और रिश्तेदारों को दिए गए है।
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अब सवाल ये उठता है की क्या बीजेपी भी अन्य पार्टियों की तरह हो गई है। जो टिकट सिर्फ अपने नेताओं के बच्चों को दे रही है? तो जवाब होगा नहीं क्योकि BJP ऐसा पहली बार नहीं कर रही है वो ऐसा पहले कर चुकी है चाहे वो यूपी विधानसभा चुनाव में राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को टिकट देना हो या फिर यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा को केंद्रीय मंत्री बनाना इन्हीं सब चीज़ को लोकतंत्र में वंशवाद की परिभाषा दी गई है।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी नेताओं के बच्चों को बांटे गए टिकट को देखते हुए बीजेपी संसदीय दल को नितिन गडकरी के बयान को याद रखना चाहिए. जहां वो कहते है कि कांग्रेस पार्टी में तो प्रथा है की एक प्रधानमंत्री के पेट से दूसरा प्रधानमंत्री बनता है।
नेता कैसे चुने जाये और किसे टिकट मिलना चाहिए ये पार्टी का अपना मामला होता है मगर बीजेपी जिसने परिवारवाद के नाम पर कभी लालू यादव के परिवार पर तंज किया तो कभी मुलायम पर और नेहरु परिवार पर। अगर वो प्रधानमंत्री न बनते तो शायद आज मध्यप्रदेश में सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय जैसे बीजेपी के दिग्गज नेता अपने बच्चों को टिकट दिलवाने के पीछे इंदौर की सीट न अटकती।
अब सवाल ये है कि क्या भारतीय जनता पार्टी भी भारतीय परिवार पार्टी में बदलने लगी है इस सवाल को जनता के पास छोड़ दिया जाये चुनाव में कौन जीतेगा और कौन हारकर घर जायेगा इसका फैसला जनता को ही लेना होता है क्योंकि ये पब्लिक है सब जानती है। 24 टिकट तो बेटों बाट दिए और 15 बीजेपी नेताओं के रिश्तेदारों को तो क्या बीजेपी अब कथित मोदी लहर के सहारे नहीं अब अपने रिश्तेदरों के सहारे चुनावी मैदान में उतरी है।
अब देखना है की ये 231 सीट वाली मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में जनता किसे चुनती है नेताओं के बेटे-बेटियों और बहुओं को या फिर रिश्तेदारों को या फिर अपने नेता को जो सड़क पानी बिजली और बेहतर शिक्षा चिकत्सा व्यवस्था दें।