एक तरफ़ भारत की अर्थव्यवस्था कमज़ोर हो चुकी है तो दूसरी तरफ़ देश के आम जनमानस के फायदे के लिए बनी सरकारी कंपनियों को पूंजीपतियों को बेचा जा रहा है।

मोदी सरकार की इस नीति पर सवाल उठाते हुए राज्य सभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा है कि यह मानसिक दिवालियापन है।

स्वामी ने अपने अधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर लिखा, “जब देश की अर्थव्यवस्था गिर रही हो तब सार्वजनिक उद्यमों को बेच देना मानसिक दिवालियापन और हताशा दर्शाता है। यह एक स्वस्थ वैचारिक अनिवार्यता नहीं हो सकती।

मोदी सरकार इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि सीएसओ के आंकड़े बताते हैं कि 2016 के बाद से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर गिरती रही है।”

दरअसल, केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार ने भारत के सरकारी संस्थानों का निजीकरण काफी वक्त पहले से ही शुरु कर दिया था। अब मोदी सरकार ने आने वाले वक्त में भारत की सरकारी संपत्तियों को बेचने का प्लान सार्वजनिक कर दिया है।

मोदी सरकार रेल के साथ-साथ हवाई अड्डों, देश के हाईवे, गैस पाइपलाइन टेलीकॉम टावर, पीएसयू समेत कई सरकारी संपत्तियों को बेचने जा रही है।

जिसका रोडमैप जल्द ही देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सार्वजनिक करने जा रही है।

आने वाले 4 सालों में सरकार को 6 लाख करोड रुपए जुटाने हैं। जिसके चलते इस योजना पर काम किया जाएगा। कुल 13 तरह की सरकारी संपत्तियों की हिस्सेदारी को बेचा जाएगा या फिर लीज पर दिया जाएगा।

इसमें हाईवे, रेलवे, पावर ट्रांसमिशन, टेलीकॉम, वेयरहाउसिंग, नेचुरल गैस पाइपलाइन शामिल हैं।

मोदी सरकार इस निजीकरण की नीति का विरोध तमाम विपक्षी दल, सामाजिक कार्यकर्ता और अर्थशास्त्री कर रहे हैं।

भारत जैसे बड़े आबादी वाले देश में बिना सरकारी कंपनियों के हर वर्ग के लोगों का “वेलफेयर” हो पाना मुश्किल है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here