रेलवे में किए जा रहे निजीकरण को भले ही मोदी सरकार प्रगति का रास्ता बता रही हो लेकिन इस देश के दलित-पिछड़े-आदिवासी वर्ग को सचेत हो जाना चाहिए। क्योंकि जब ट्रेन का संचालन निजी कंपनियां करेंगी तो आरक्षण के तहत नियुक्तियों के लिए बाध्य नहीं होंगी। इस तरह से हुई नियुक्तियों में दलित, पिछड़े और आदिवासी वर्ग के लोगों की नियुक्ति लगभग असंभव हो जाएगी।

इसी मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए बसपा प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने ट्विटर पर लिखा- “भारत की रेलवे अगर निजी कम्पनियाँ चलाएँगी तो रोज़गार भी निजी कम्पनियाँ ही देंगी। दलित,पिछड़ों को मिला आरक्षण ख़त्म होना लाज़िमी है और निर्धन लोग हाशिए पर चले जाएँगे व बेरोज़गारी व ग़रीबी बढ़ेगी। ”

दरअसल इस प्रतिक्रिया के साथ उन्होंने एक न्यूज़ पेपर की कटिंग शेयर की है। जिसमें लिखा गया है,-निजी करण की दिशा में बड़ा कदम, रेलवे ने 109 प्राइवेट ट्रेन का खोला रास्ता, ‘निजी कंपनियां चलाएंगी पैसेंजर ट्रेनें’

इसमें स्पष्ट किया गया है कि हजारों करोड़ के इस प्रोजेक्ट को 35 साल के लिए ले आया गया है और रेलवे अपनी तरफ से सिर्फ ड्राइवर और गार्ड देगा बाकी सारी जिम्मेदारी प्राइवेट कंपनियों की होगी।

सामाजिक न्याय की समझ रखने वाला कोई भी व्यक्ति इस योजना को देखकर बता देगा कि दलित पिछड़े और आदिवासी वर्ग के लोगों के हितों पर डाका डाला जा रहा है। नियुक्तियों में आरक्षित उनकी सीटों की अनिवार्यता को खत्म किया जा रहा है।
शायद यही वजह है कि बीजेपी सरकार को निजी करण का ये फार्मूला बेहद पसंद आ रहा है।

मेक इन इंडिया के नाम पर आगे बढ़ाया जा रहे इस प्रोजेक्ट को देखकर लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन वाले न्यू इंडिया में वंचित वर्ग के लिए कोई खास जगह नहीं है क्योंकि लगभग सभी क्षेत्रों से इसी तरह की खबरें आ रही हैं कि वहां पर दलितों पिछड़ों आदिवासियों के आरक्षण को खत्म किया जा रहा है।

तमाम सरकारी कंपनियों/पीएसयू को अब निजी हाथों में सौंपा जा रहा है। जिन सरकारी कंपनियों की कीमत लाखों करोड़ की है उन्हें कुछ हजार करोड़ में बेचा जा रहा है।

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