राफ़ेल डील में पहले से घोटाले का आरोप झेल रही मोदी सरकार अब एक और घोटाले में फंसती नज़र आ रही है। कैग की आज यानी 9 नवम्बर को आई रिपोर्ट में कहा गया है कि, “2015 में सरकार ने एक टेलीकॉम कम्पनी को नियमों को ताक पर रखकर कुछ स्पेक्ट्रम दिए जिससे 560 करोड़ रूपये का नुक़सान हुआ है।

कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि,माइक्रोवेव स्पेक्ट्रम (एमडब्ल्यूए) के 101 अप्लीकेशन पहले से लम्बित होने के बावजूद सरकार ने एक टेलीकॉम कम्पनी को नियमों की अनदेखी कर पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर स्पेक्ट्रम दिया गया।  हालांकि कैग की रिपोर्ट में उस टेलीकॉम कम्पनी का नाम नहीं बताया गया।  लेकिन सवाल यही है कि आख़िर वो कौन सी चहेती कम्पनी थी जिसके लिए मोदी सरकार ने नियमों की परवाह किए बग़ैर स्पेक्ट्रम दे डाले?… आख़िर कौन था इतना ख़ास?

रिपोर्ट में बताया गया है कि-

मोदी सरकार के टेलीकॉम मंत्रालय ने 2जी के पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर एक टेलीकॉम कम्पनी को कुछ स्पेक्ट्रम आवंटित किया, जबकि सरकार के पास स्पेक्ट्रम के 101 एप्लीकेशन लंबित थे ।

रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने ‘मनमोहन सरकार की द्वारा 2008-09 में पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर दिए गए स्पेक्ट्रम को रद्द कर दिया था। जिसके बाद साल 2012 में टेलीकॉम डिपार्टमेंट ने एक समिति बनाई थी। इस कम्पनी का काम सभी स्पेक्ट्रम आवंटन की सभी कैटेगरी में स्पेक्ट्रम एलोकेशन को मॉनीटर करना था।

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इस समिति का ये प्रस्ताव था कि माइक्रोवेव बैंड कैटेगरी में सभी कम्पनियों को स्पेक्ट्रम का एलॉटमेंट नीलामी के ज़रिये हो। न कि पहले आओ, पहले पाओ के ज़रिये। लेकिन मोदी सरकार ने 2015 में इस नीयम को अनदेखा कर और इसके उलट एक टेलीकॉम कम्पनी को स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया। जिससे सरकारी ख़ज़ाने को 560 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ। इसमें 520.79 करोड़ का नुक़सान इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने बीएसएनएल से वह स्पेक्ट्रम वापस नहीं लिया जिसको लौटाने की पेशकश बीएसएनएल ने की थी।

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