आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों दस फीसदी आरक्षण देने के मोदी सरकार के फैसले का कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया है। विरोध करने वाले दलों की फेहरिस्त में लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का नाम भी शामिल है।
राजद ने सवर्ण आरक्षण को लेकर पेश किए गए बिल के प्रवधानों पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि इस बिल ने ग़रीबी की परिभाषा ही बदल दी है। राजद ने तंज़ कसते हुए कहा कि इस बिल के लिहाज़ से तो अब बिहार के सभी स्वर्ण विधायक ग़रीब कहलाएंगे।
राजद के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से लिखा गया, “10% के नायाब जुमले से गरीबी की परिभाषा का नया चक्कर अलग से फँसेगा! इस देश में 33 रुपए प्रति दिन कमाने वाला गरीब नहीं, 21 हज़ार प्रति माह कमाने वाला आय कर देने में सक्षम किंतु सवर्ण 66 हज़ार प्रति माह कमा कर भी गरीब कहलाएँगे! कम से कम मासिक आय के पैमाने पर आज से बिहार के सभी सवर्ण विधायक ग़रीब कहलाएँगे!”
बता दें कि इस बिल के मसौदे में कहा गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण जाति के लोगों को शिक्षा, रोजगार, सरकारी और गैर-सरकारी क्षेत्रों में भी आरक्षण दिया जाएगा।
इस आरक्षण के लिए वही लोग योग्य होंगे, जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से कम और जिनके पास 5 एकड़ से कम ज़मीन है। हालांकि, इस प्रावधान के हिसाब से सिर्फ 5 फीसदी ही सवर्ण ऐसे बचेंगे जो आरक्षण के लिए योग्य नहीं होंगे।
मोदी सरकार द्वारा इस बिल को पेश किए जाने के बाद यह सवाल भी उठ रहे हैं कि जब सरकार 2.5 लाख सालाना कमाने वालों से इनकम टैक्स ले रही है तो फिर वह किस आधार 8 लाख तक सालाना कमाने वाले सवर्णों को आर्थिक रूप से कमज़ोर बता रही है।