कई सालों तक जांच के बाद अब बोफोर्स मामले में जांच एजेंसी सीबीआई ने हाथ खड़े कर दिए हैं। सीबीआई ने गुरुवार को दिल्ली कोर्ट से बोफोर्स मामले में आगे की जांच करने वाली याचिका वापस ले ली है।

एजेंसी ने नए सबूत का हवाला देते हुए फरवरी 2018 में याचिका दायर की थी। एजेंसी ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट नवीन कुमार कश्यप को सूचित किया कि मामले में भविष्य में कार्रवाई करने पर एजेंसी जल्द फैसला करेगी। अभी के लिए एजेंसी याचिका वापस लेना चाहती है।

याचिका पर फैसला सुनते हुए जज ने कहा कि सीबीआई ने याचिका दायर की थी। यदि अब वो याचिका वापस लेना चाहते हैं तो उन्हें पूरा अधिकार है। एजेंसी का दावा था कि उनके पास मामले से जुड़े अतिरिक्त दस्तावेज और सबूत हैं। मगर अब एजेंसी ने कोर्ट का निर्णय आने के पहले ही याचिका वापस लेने की बात कही है।

कोर्ट ने 4 दिसंबर 2018 को सीबीआई से पुछा था कि बोफोर्स मामले की जांच के लिए उन्हें कोर्ट की अनुमति की क्या आवश्यकता पड़ रही है? वही निजी याचिकाकर्ता अजय अग्रवाल ने भी बोफोर्स मामले में आगे की जांच के लिए अपनी याचिका वापस लेने का मन बना लिया है।

खबर के सामने आते ही कांग्रेस ने बीजेपी को अपने निशाने पर लिया। कांग्रेस के प्रणव झा ने मोदी सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि चुनाव ख़त्म होने को है। मोदी की सीबीआई बोफोर्स की जांच करने से मना कर रही है। ऐसे में क्या पीएम नरेन्द्र मोदी माफ़ी मांगेंगे?

उन्होंने ट्वीट किया, ‘चुनाव खतम। तमाशा खतम। मोदी जी की CBI अब Bofors की जांच करने से इनकार कर रही है। क्या प्रधानमंत्री माफी मांगेंगे ?’

बता दें मोदी सरकार के दौरान सीबीआई पर सरकार के अनुसार तहकीकात करने का आरोप लगता आया है।

बोफोर्स डील 1986 में की गई थी। भारतीय सेना के लिए 155-mm की 400 हॉवित्जर गन खरीदीं गईं। ये सौदा स्वीडिश हथियार निर्माता एबी बोफोर्स के साथ किया गया। अप्रैल 16,1987 स्वीडिश रेडियो ने दावा किया था कि 1,437 करोड़ रुपये के सौदे को सुरक्षित करने के लिए एबी बोफोर्स ने शीर्ष भारतीय राजनेताओं और रक्षा कर्मियों को रिश्वत दी थी। मामले की तहकीकात करते हुए सीबीआई ने साल 1990 में उस समय एबी बोफोर्स के चीफ मार्टिन अरबड़ो के खिलाफ एफआईआर  दायर की थी।

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