‘हिंदू मर गया मुसलमान मर गया किसी ने न देखा इंसान मर गया’। यही हाल है उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का जिसे दंगाइयों में भी अच्छे-बुरे दिखाई देने लगे हैं।

एक तरफ जहां योगी सरकार ने 2013 में हुए मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के 38 आरोपियों को माफ़ करने का आदेश दिया है।

वहीं दूसरी तरफ कानपुर में 1984 में हुए दंगों को लेकर 5 फरवरी, 2019 को स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन कर दिया है।

ये सीएम योगी ही हैं जो हिंसा करने वालों की राजनीति और धर्म खोज लेते हैं। यही वजह रही कि मुजफ्फरनगर दंगों में मारे गए करीब 62 से ऊपर लोगों की मौत सरकार के लिए मौत नहीं है।

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में योगी सरकार 38 आरोपियों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने जा रही है। योगी सरकार ने 2013 के इस दंगों के दौरान 6 पुलिस थानों में दर्ज करीब 119 मुकदमों पर विधिक राय ली थी, इसके बाद इन मुकदमों को वापस लेने का फैसला किया गया है।

वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानपुर में साल 1984 के दौरान हुए दंगों को लेकर मंगलवार (पांच फरवरी, 2019) को स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) का गठन कर दी। जिसकी जानकारी खुद प्रिंसिपल सेक्रेट्री अरविंद कुमार ने दी।

उन्होंने कहा कि यह चार सदस्यीय एसआईटी उन हालात की जांच-पड़ताल करेगी, जिनकी वजह से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिले में सिख विरोधी दंगे भड़के थे।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एसआईटी को एक अन्य जांच का आदेश भी दिया है, जिसमें नजीराबाद पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर और दंगों से जुड़ी अन्य शिकायतें शामिल हैं।

एसआईटी की कमान यूपी के सेवानिवृत्त डीजीपी अतुल को सौंपी गई है। उनकी टीम में सेवानिवृत्त एडिश्नल डायरोक्टर (प्रॉसिक्यूशन) योगेश्वर कृष्ण श्रीवास्तव और सेवानिवृत्त जिला जज सुभाष चंद्र अग्रवाल हैं। इनके अलावा टीम में यूपी पुलिस के वरिष्ठ अफसर भी शामिल होंगे।

ऐसा कारनामा सिर्फ योगी सरकार ही कर सकती है कि उसे दंगाइयों में भी बीजेपी और कांग्रेस दिखाई दें। हिंसा तो हिंसा है और दंगें में मारे गए लोग इंसान उनकी हत्या की जांच जहां निष्पक्ष तरीके से होनी चाहिए थी मगर कांग्रेस और बीजेपी के इस खेल में दंगाइयों में फर्क खोजा जाना और माफ़ किया जाना कोई पहला मामला नहीं है।

इससे पहले सीएम योगी ने अपने ही ऊपर लगे दंगे के केस को वापस ले लिया था। अब एक बार फिर योगी सरकार को 84 दंगे कांग्रेस की वजह से याद तो आ रहे हैं मगर वो सभी दंगे भूल चुकी है जिसमें उसके अपने नेता शामिल रहें, ऐसा सिर्फ भारत में ही मुमकिन है जहां दंगाइयों का भी मजहब और राजनीतिक दल देखा जाता है।

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