देश की अर्थव्यवस्था किस तरह से गर्त में जा रही है इसे Centre for Monitoring Indian Economy (CMIE) के निदेशक महेश व्यास के लेख से समझा जा सकता है। जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि पिछले साल इस दौरान 86 मिलियन यानी 8.6 करोड लोगों के पास वेतन वाली नौकरी थी और अब मात्र 65 मिलियन यानी 6.5 करोड़ लोगों के पास वेतन वाली नौकरी है।

इतने कम समय में आखिर 2.1 करोड़ लोगों की जॉब कहां चली गई?

सुशांत राजपूत की मौत मामले में दिन रात रिया कनेक्शन की गुत्थी तलाशने में व्यस्त टीवी मीडिया इसपर थोड़ी भी चर्चा नहीं कर रहा है।

हालांकि सोशल मीडिया पर तमाम लोग इस पर लिख रहे हैं।

बीबीसी पत्रकार राजेश प्रियदर्शी लिखते हैं- Centre for Monitoring Indian Economy (CMIE) के निदेशक महेश व्यास जाने-माने और ज़िम्मेदार अर्थशास्त्री हैं.

उनका कहना है कि भारत में salaried class की 2 करोड़ से ज़्यादा नौकरियाँ चली गई हैं। लेख हिंदी के अख़बारों में नहीं दिखेगा, टीवी पर तो रिया-कंगना-अर्णब ही सबसे बड़ी समस्या और समाधान दोनों हैं।

अर्थव्यवस्था के इन्हीं हालातों पर और मीडिया के गैर जिम्मेदाराना हरकतों पर प्रतिक्रिया देते हुए सत्येंद्र PS लिखते हैं-

भारत में 2.1 करोड़ लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं. नौकरी उसे कहते हैं, जिसमें हर महीने नियमित रूप से वेतन मिलता है. प्रति नौकरी 4 लोगों की निर्भरता मानकर चलें तो 8.4 करोड़ लोग सिर्फ ऐसे लोग फांकाकशी या भुखमरी की हालत में या लोन का किस्त न चुका पाने की हालत में आ चुके हैं, जो नौकरी करते थे.

मनरेगा या दिहाड़ी मजदूर टाइप लोग इसमें शामिल नहीं हैं, जो रोजही पर काम करते हैं. वह भी नहीं शामिल हैं जो खाने पीने का ठेला रेहड़ी लगाते हैं, जिनका काम धाम बंद है.

बेकारी के कारण आत्महत्याएं, मार कुटाई, छिनैती अब इतनी आम हो चुकी हैं कि अखबारों ने उस पर लिखना कम कर दिया है, क्योंकि खबर में विविधता लाने के लिए नया ऐंगल नहीं मिल रहा है. कब तक बेकारी का रोना रोएं.

इस आधार पर एक अनुमान यह लगाया जा सकता है कि लोग फांकाकशी करके भी सोशल मीडिया से लेकर मीडिया सर्वे में मोदी मोदी कर रहे हैं. यह कहना व्यावहारिक नहीं लगता. दूसरा अनुमान यह लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया के हुड़दंगी कम हैं, आक्रामक हैं इसलिए ऐसी फीलिंग आती है कि सरकार को अपार समर्थन है.

जो जिंदा बचे हैं, जिनकी नौकरियां नहीं गई हैं, कम से कम वह तब तक रनौत, सुशांत, रिया मामले में मजे लें, जब तक वे जिंदा हैं।

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