भारत को चाँद पर पहुँचाने के दावे पर सत्ता में आए नरेंद्र मोदी की सरकार में देश की सबसे बड़ी सार्वजनिक कंपनियों में से एक कोल इंडिया बाज़ार पूंजीकरण में 85,000 करोड़ की गिरावट आई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले 4 साल के कार्यकाल के दौरान दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी कोल इंडिया के बाज़ार पूंजीकरण में 85,000 करोड़ की गिरावट आई है।

उसका पूंजीकरण 31 मार्च 2015 के 2.29 लाख करोड़ के सर्वोच्च स्तर से घटकर 1 मार्च 2019 को 1.44 लाख करोड़ रह गया। कंपनी में सरकार की हिस्सेदारी 72.9% है। कोल इंडिया के इतने बड़े नुकसान का मुख्य कारण मोदी सरकार के ख़राब गवर्नेंस को बताया जा रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने वर्ष 2017-18 में कोल इंडिया में स्थाई अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं की। इसके कारण कंपनी की नीति व उसके प्रशासन पर बुरा पड़ा। इसका नतीजा अब हज़ारों करोड़ के नुकसान के रूप में देश के सामने है।

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ये हाल तब है जब सत्ता में आने पर इस सरकार ने गुड-गवर्नेंस का नारा दिया था। स्तिथि ये हो चुकी है जिस कोल इंडिया के शेयर का दाम वर्ष 2015 में 362.4 रु. था उसका दाम अब गिरकर 232.45 रु. रह गया है। इसके अलावा लाभांश के लिए सरकार की भूख को भी बड़ा कारण बताया गया है।

इस सरकार ने कोल इंडिया की स्तिथि को सुधारने के बजाए उस से ज़्यादा से ज़्यादा लाभांश लेने पर ज़ोर दिया। इन पिछले कुछ सालों में लगातार नुकसान उठा रही कंपनी ने सरकार को लाभांश अपने कैश रिज़र्व में से दिया जिसके कारण उसकी स्तिथि और बिगड़ गई।

वहीं, मोदी सरकार सार्वजानिक उपक्रमों में से लगातार अपनी हिस्सेदारी निजी कंपनियों को बेच रही है। कोल इंडिया के साथ भी यही हुआ और बाज़ार में इसकी विश्वसनीयता घटती चली गई। वर्ष 2014-15 में कोल इंडिया 90% हिस्सेदारी सरकार की थी जिसे इस सरकार ने लगातार बेचकर अब 72.9% पर ला खड़ा किया है और अब ये सरकार 3% और हिस्सेदारी बेचना चाहती है।

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कोल इंडिया सभी सार्वजानिक उपक्रमों को लेकर मोदी सरकार का रवैय्या अपनी जेब भरने और कॉर्पोरेट को खुश करने वाला रहा है। इस सरकार के कार्यकाल में सार्वजानिक उपक्रमों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है और उनमें सुधार लाने के बजाए सरकार उन्हें उद्योगपतियों को बेच रही है। इसके खिलाफ इन उपक्रमों के मज़दूर भी विरोध जाता चुके है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जैसे ये सरकार एक रणनीति के तहत इन देश की इस संपत्ति को कमज़ोर कर मुनाफ़े और लाभांश के नाम पर निजी कंपनियों को सौपना चाहती है।

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