समाजवादी पार्टी और जेडीएस के बाद अब कांग्रेस ने भी टीवी डिबेट में अपनी पार्टी का प्रवक्ता भेजने पर रोक लगा दी है। सत्तापक्ष कांग्रेस के इस कदम को लोकसभा चुनाव हुई विपक्ष की हार को बता रहा है। लेकिन ये सोचने वाली बात है कि आखिर क्यों लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से विपक्ष का मोहभंग हो गया है?

विपक्ष का मीडिया से मोहभंग क्यों हुआ इसकी तह में जाने पर पता लगेगा कि जिस तरह से टीवी एंकर्स ने सरकारी और एक खास पार्टी का प्रतिनिधि बनकर डिबेट में बैटिंग की है उससे बीजेपी को चुनाव में काफी फायदा हुआ है।

इस बात को कांग्रेस, सपा, राजद समेत अन्य विपक्षी दलों के प्रवक्ता साफ़ तौर पर मानते हैं कि टीवी डिबेट्स में एंकर बीजेपी की तरफ से बहस को डिफेंड करता है। जिसकी वजह से बीजेपी प्रवक्ता को बल मिलता है और अन्य पार्टियों के प्रवक्ता को अपनी बात कहने का मौका नहीं दिया जाता।

राजनीतिक दलों का ऐसा करने के पीछे मकसद और वजह साफ़ है। विपक्षी दलों का कहना है की हम अपना प्रतिनिधि भेजेगें तो उनकी सुनी नहीं जाती है। ऐसे में हमारे प्रवक्ता को सिर्फ अपमानित करने के लिए बुलाया जाता है और हमारी बात भी आम जनता तक नहीं पहुँच पाती है।

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तो क्या 5 साल तक टीवी पत्रकारों ने पत्रकारिता नहीं सत्तापक्ष की चमचागिरी की है तभी आज समूचा विपक्ष मीडिया से नाराज है? अब इसे विपक्ष का लोकसभा चुनाव में हार से सबक कहा जाए या फिर पीएम मोदी की गोदी मीडिया का साइड इफ़ेक्ट। लेकिन मीडिया से देश के आधे हिस्से और विपक्ष का अविश्वाश ये लोकतंत्र के लिए घातक है!

बता दें कि देश के दूसरे सबसे बड़े राष्ट्रीय राजनीतिक दल ने ऐलान कर दिया है कि वो अपना प्रवक्ता टीवी न्यूज़ डिबेट में नहीं भेजेगी। इस मामले पर जानकारी देते हुए कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीटर पर लिखा, “कांग्रेस ने फैसला किया है कि वो अब महीने भर के लिए अपने प्रवक्ता टीवी डिबेट्स नहीं भेजेगी। सभी मीडिया चैनल/एडिटरों से विनती है कि किसी भी कांग्रेस प्रतिनिधि को अपने शो में ना बुलाये।“

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