सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें पद से हटाकर छुट्टी पर भेजे जाने के मोदी सरकार के फैसला को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने वर्मा की बहाली का आदेश दिया है।

हालांकि, केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) द्वारा उनके खिलाफ की जा रही भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच पूरी होने तक उन्हें बड़े नीतिगत फैसले लेने से रोका गया है। लेकिन ऑफिस में रोज़ाना के फैसले ले सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि वर्मा के खिलाफ आगे का फैसला उच्चस्तरीय समिति करेगी।

यह फैसला सीवीसी की जांच में आए नतीजों के आधार पर किया जाएगा। कोर्ट ने कहा कि समिति की बैठक एक हफ्ते में बुलाई जानी चाहिए। इस समिति में प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस होते हैं।

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छह दिसंबर को सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने आलोक वर्मा की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा लिया था। सीजेआई रंजन गोगोई आज छुट्टी पर हैं, ऐसे में जस्टिस संजय किशन ने फैसला पढ़कर सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सीवीसी एक्ट (DPSE एक्ट) में विधायिका द्वारा संशोधन की जरूरत है। कोर्ट ने कहा विधायिका को सीबीआई निदेशक के ऑफिस को सरंक्षण देना चाहिए। विधायिका को एजेंसी की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का कांग्रेस ने स्वागत करते हुए केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस नेता सुनील जाखड़ ने कहा कि पीएम मोदी के लिए यह बड़ा झटका है, भ्रष्टाचार के लिए खिलाफ लड़ने वालों की असलियत सामने आ गई है।

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वहीं कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने ट्वीट कर लिखा, “थोड़ी बुलंदी क्या मिली इन बादलों को, ये खुद को आसमान समझ बैठे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अब ये ज़मीन पर आ गए हैं। मोदी के डंडा तंत्र को कानून तंत्र ने दिखाया आईना #CBIvsCBI”।

बता दें कि सीबीआई चीफ आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। जिसके बाद 23 अक्टूबर को मोदी सरकार ने दोनों शीर्ष अफसरों को छुट्टी पर भेजा था। छुट्टी पर भेजे जाने के बाद आलोक वर्मा ने सरकार के इस फैसले के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी।

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