सरकार और तेल कंपनियों की सांठ-गांठ के बदौलत देश में पेट्रोल-डीजल के दामों में कमी नहीं आ रही है। महंगाई, कोरोना और बेरोज़गारी की मार झेल रही जनता को कहीं से राहत की उम्मीद नहीं है। जहां महंगाई कम करने का स्कोप है, वहां भी मुनाफाखोरी की जा रही है।

दरअसल, अंतराष्ट्रीय बाज़ार में दिसंबर महीने में कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) के दामों में गिरावट आई। इसका असर पेट्रोल के दामों पर भी पड़ना चाहिए था। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अपनी तेल की ज़रूरत का लगभग 80 फीसदी बाहर से आयात करता है। अफ़सोस, ऐसा हुआ नहीं।

जनसत्ता की ख़बर के अनुसार अगर सरकार और सरकारी तेल कंपनियां चाहें तो पेट्रोल 8 रुपए और डीजल 7 रुपए सस्ता हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि क्रूड ऑयल नवंबर में 80.64 डॉलर से गिरकर दिसंबर में 73.30 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया था।

कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने इसपर प्रतिक्रिया देते हुए अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर लिखा, “बहुत हो चुका- अब तो पेट्रोल-डीज़ल के दाम कम करो!”

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक अगस्त महीने में कच्चे तेल की कीमत में 3.74 डॉलर प्रति बैरल की गिरावट आई। उसके बावजूद भी कंपनियों ने पेट्रोल को मात्र 65 पैसे सस्ता किया। इसके उलट, जब सितंबर में कच्चा तेल 3.33 डॉलर प्रति बैरल महंगा हुआ तो पेट्रोल को 3.85 रुपए महंगा कर दिया गया।

ये तो ज़ाहिर सी बात है कि तेल कंपनियां दाम घटाने के पक्ष में नहीं रहती हैं। ऐसे में सरकार की तरफ से दबाव पड़ने पर ही कुछ बदलाव संभव है।

केंद्र में सरकार बनाने के बाद से नरेंद्र मोदी को पेट्रोल के बढ़ते दामों की चिंता नहीं होती। हालाँकि, इससे पहले वो “बढ़ते पेट्रोल दामों को सरकार की असफलता” ही घोषित कर देते थे।

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