उत्तर पूर्व में दो राज्यों के बीच मचे घमासान की खबर भले ही इस देश की मीडिया के लिए कोई बड़ी ख़बर न हो मगर बड़े काम की खबर जरूर है। इसलिए वहां की हिंसक झड़प हो कम कवरेज देकर भी ये अपने ‘काम’ की रिपोर्टिंग कर ले रहे हैं।

इसी की मिसाल है दैनिक भास्कर की ये खबर, जिसमें असम-मिजोरम विवाद के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार बताया जा रहा है।

दैनिक भास्कर ने खबर को मुस्लिम बनाम आदिवासी एंगल देते हुए लिखा-‘कहीं इस विवाद की वजह मुस्लिमों की बढ़ती हुई आबादी तो नहीं!’

जिससे पाठकों के मन में ये बात स्थापित हो जाए कि उत्तर-पूर्व के राज्यों में बढ़ती हुई मुस्लिम आबादी ही सबसे बड़ी समस्या है। घटना कुछ भी हो, उसकी जड़ में इन्हें ही जिम्मेदार माना जाए।

हालांकि खबरों के एंगल की बात तो की ही जानी चाहिए साथ ही इस बात की भी पड़ताल होनी चाहिए कि क्या ये अखबार सच बोल रहा है?

तो जवाब मिलता है ‘नहीं’ ये झूठ बोल रहा है। सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम विरोधी मानसिकता का तुष्टीकरण कर रहा है।

इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल लिखते हैं – “हो गई क्रांति! पड़ गई कलेजे को ठंडक! मैंने कहा था न कि मामले में Stand with this, stand with that न करें। मीडिया का मामला हो तो मुझसे पूछ लें।

कहीं से धुआँ उठ रहा है तो ज़रूरी नहीं है कि क्रांति हो रही है। हो सकता है गोबर जल रहा हो।

 

आपकी जानकारी के लिए जिस 2001 की मुस्लिम आबादी की बात भास्कर कर रहा है तब वहाँ सिर्फ 10,099 मुसलमान थे। अब भी वहाँ सिर्फ 1.3% मुसलमान हैं।”

इसकी खबर का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए स्तंभकार गिरीश मालवीय लिखते हैं-

“अरे शाबाश ! क्या गजब का घुमाया है, लग रहा है मोदी सरकार से इनका न सिर्फ मामला सेट हो गया है बल्कि अगले साल होने वाले चुनावों के लिए बल्क डील भी हो गयी है।

मुझे तो लगता है कि भारत में हुई हर बड़ी घटना में कोई न कोई मुस्लिम हिन्दू एंगल रहता है ओर अगर किसी घटना में हिन्दू मुस्लिम एंगल नही है तो वो घटना हुई ही नही !”

दरअसल कुछ दिनों पहले ही दैनिक भास्कर के दफ्तर में पड़े इनकम टैक्स के छापे की वजह से इस अखबार को क्रांतिकारी बताया जा रहा था। मोदी सरकार का विरोधी बताया जा रहा था।

मगर खबरों का मिजाज देखकर साफ हो जा रहा है कि भाजपा RSS के एजेंडे पर ही ये अखबार भी काम कर रहा है।

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