जम्मू कश्मीर के कठुआ में आठ साल की एक मासूम बच्ची से गैंगरेप और हत्या मामले में मामले में अदालत ने 6 लोगो को दोषी करार दिया है। जिनमें से तीन को उम्रकैद और तीन को 5-5 साल की सजा सुनाई गई है। मगर उस मीडिया का क्या जो इसे बलात्कार मान ही नहीं रहा था।

हिंदी पट्टी का अख़बार दैनिक जागरण ने कठुआ को बलात्कार मानने से ही मना कर दिया था। जिसे लेकर अख़बार और न्यूज़ चैनल दोनों ग्राउंड रिपोर्ट करते हुए आरोपियों का समर्थन करते नज़र आए थे।

जबकि पठानकोट की अदालत ने सुनवाई करते हुए अपने फैसले में मुख्य आरोपी सांझीराम समेत छह लोगों को दोषी करार दिया। क्या इन मीडिया संस्थानों को फैसले के बाद माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए? क्या मीडिया में अब इतना बाजारू हो चला है की उसे 8 साल की बच्ची को भी नहीं बक्श रही है।

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अब भलाई इसी में है की एक मीडिया संस्थान होने के नाते दोनों समूहों को एक माफीनामा ज़रूर छापना चाहिए। क्योकि  नैतिकता तो कम से कम यही कहती है। क्योंकि दोनों ही मीडिया संस्थान की पहुँच ज्यादा है. अगर वो ही इस तरह की झूठी खबरों को बल देंगें तो और न्यूज़ चैनल और अखबारों का क्या होगा?

बता दें कि पिछले साल 2018, 10 जनवरी को अगवा की गई आठ साल की बच्ची को कठुआ जिले के एक मंदिर में बंधक बनाकर रखा गया था और उससे सामूहिक बलात्कार किया गया था।

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यही नहीं बच्ची को मारने से पहले उसे चार दिन तक बेहोश रखा गया था। जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिया गया था इसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। घटना के विरोध में लोग सड़कों पर आ गए थे।

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