किसान आंदोलन को कवर करने पहुंच रहे कुछ चैनलों के खिलाफ़ किसानों ने मोर्चा खोल दिया है। किसानों का कहना है कि ये चैनल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गोद में बैठकर किसानों के विरोध में झूठी ख़बरें चला रहे हैं।
किसानों ने तीन चैनलों का तो साफ़ तौर पर नाम लेकर कहा है कि वो उनके आंदोलन को बदनाम करने के लिए फेक न्यूज़ का सहारा ले रहे हैं।
किसानों का कहना कि वो इन चैनलों को अपना आंदोलन कवर नहीं करने देंगे और न ही कोई किसान इन चैनलों को अपना इंटरव्यू देगा। किसान जिन तीन चैनलों का बहिष्कार कर रहे हैं उनके नाम ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक टीवी और आजतक हैं।
किसानों ने इन चैनलों को ‘मोदी मीडिया’ की संज्ञा दी है। इन चैनलों के रिपोर्टर जैसे ही किसान आंदोलन को कवर करने पहुंचते हैं तो उन्हें किसानों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में ज़ी पंजाब के रिपोर्टर बासु मानचंदा को भी किसानों के ज़बरदस्त गुस्से का सामना करना पड़ा था।
तब किसानों ने बासु मानचंदा को देखकर ‘मोदी मीडिया’ मुर्दाबाद के नारे लगाए थे और उन्हें वहां से भगा दिया था।
वहीं इससे पहले हरियाणा के सिंघु बार्डर पर आजतक के रिपोर्टर और कैमरामैन को किसानों ने आड़े हाथों लिया था।
तब किसानों ने आजतक पर झूठी ख़बरें चलाने का आरोप लगाते हुए उसके रिपोर्टर और कैमरामैन को घेर लिया था। जिसके बाद रिपोर्टर और कैमरामैन को वहां से जाना पड़ा था।
किसान आंदोलन से पहले ‘मोदी मीडिया’ जैसा शब्द प्रचलित नहीं था। सत्ता का पक्ष लेने वाली मीडिया का विरोध करने वाले इसे ‘गोदी मीडिया’ की संज्ञा दिया करते थे।
नागरिकता कानून के विरोध में हुए शाहीनबाग में आंदोलन के दौरान भी जब इस तरह की मीडिया का बहिष्कार किया गया था, तब गो बैक गोदी मीडिया के नारे बुलंद हुए थे।
बता दें कि गोदी मीडिया शब्द की इजाद वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने की थी। उन्होंने मीडिया को ये संज्ञा इसलिए दी क्योंकि उनके मुताबिक मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने के बजाए सत्ता की गोद में बैठ गई है। जिसे गोदी मीडिया ही कहना बेहतर है।
अब किसानों ने गोदी शब्द को मोदी से बदल दिया है। किसानों के मुताबिक मीडिया जिसकी गोदी में बैठी है, वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इसलिए उसे मोदी मीडिया कहना ग़लत नहीं।