अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, बेंगलुरु के सेण्टर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट ने मंगलवार को बेरोज़गारी के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019’ जारी की है.

रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2016 से अब तक 50 लाख लोगों ने अपनी नौकरियां खो दी हैं. नौकरियों में गिरावट की शुरुआत का समय नोटबंदी के समय से टकराता है पर डाटा के आधार पर कोई ‘कैजुअल लिंक’ स्थापित नहीं किया जा सकता. रिपोर्ट में 2018 में बेरोज़गारी दर को 6 प्रतिशत बताया गया है जो 2011 की तुलना में दुगुना हो गया है.

गौरतलब है कि जनवरी में लीक हुए ‘पेरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे’ के तहत के सर्वेक्षणों ने 2017- ’18 में भारत में बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत बताया गया था जो पिछले 45 साल में सबसे अधिक है.

महिलाओं के लिए नौकरियों में नुकसान ज़्यादा है. रिपोर्ट में लिखा है, ‘नौकरियों में गिरावट की वजह नोटबंदी हो या न हो, पर ये निश्चित ही चिंता क कारण है और जल्द ही पॉलिसी हस्तक्षेप की ज़रूरत है.’

इसी रिपोर्ट से पता चलता है कि सामान्य रूप से बेरोजगारी 2011 के बाद तेजी से बढ़ी है. बेरोज़गारों में अधिक प्रतिनिधित्व उच्च शिक्षित और युवाओं का है. इसी समयसीमा में शिक्षितों के अलावा कम शिक्षित लोगों के लिए नौकरियों में नुकसान और काम के अवसर कम हुए हैं. साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले तीन साल में भारतीय श्रम बाजार में भारी उथल-पुथल देखी गई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी चुनाव में प्राथमिक आर्थिक मुद्दा बनकर उभरी है.

नोटबंदी से व्यापारी, आम जनता और युवा सब प्रभावित हुए हैं. इस एक फैसले ने कईयों से उनके रोज़गार के साधन छीन लिए. व्यापारियों की दुकानों पर शटर गिरा दिए. 2019 लोकसभा चुनाव के लिए मतदान शुरू हो चुके हैं. लेकिन बीजेपी अपनी किसी भी रैली मे बेरोज़गारी, जीएसटी या नोटबंदी का ज़िक्र नहीं करती. अपनी नाकामियों को छिपाकर दोबारा सरकार बनाने में लगी हुई है.

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