लोकसभा चुनाव की तारीख़ों के ऐलान के साथ ही देशभर में आचार संहिता लागू हो गई है। आचार संहिता लगने के बाद अब सत्ताधारी पार्टी या सरकार कोई लोक लुभावन घोषणाएं नहीं कर सकती। यानी अब BJP या मोदी सरकार जनता से कोई नया वादा नहीं कर सकती।

सत्ताधारी BJP को अब जनता के बीच जाकर अपने पांच साल के कामों के आधार पर ही वोट मांगने होंगे। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सरकार ने वाकई इन पांच सालों में इतना काम किया है, जिसके आधार पर वह जनता से वोट की अपील कर सकें। क्या BJP ने पांच साल पहले जनता से किए अपने तमाम वादों को पूरा कर दिया है?

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इसका जवाब पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने ट्विटर के ज़रिए दिया है। उन्होंने लिखा, “रोज़गार? ग़ायब है.. महिला सुरक्षा? ग़ायब है.. किसान की दुगुनी आय? ग़ायब है.. 15 लाख हर घर? ग़ायब है.. विकास? ग़ायब है.. सस्ता सिलिंडर? ग़ायब है.. सस्ता पेट्रोल? ग़ायब है.. स्मार्ट सिटीज़? ग़ायब है.. मूह तोड़ जवाब? ग़ायब है.. भाईचारा? ग़ायब है”। उन्होंने आगे लिखा, “जो पूछते हैं हाउ इस द जोश? अब जनता करेगी उनको ख़ामोश”।

ग़ौरतलब है कि सत्ता में आने पहले बीजेपी ने जनता से ‘अच्छे दिन’ का वादा किया था। जनता ने भी बीजेपी के इस वादे पर भरोसा दिखाते हुए उसके हाथों में केंद की सत्ता की कमान सौंप दी थी। जनता को उम्मीद थी कि बीजेपी के आने से उसके दिन बदल जाएंगे। एक अच्छी सरकार आने से उसकी सारी परेशानियां ख़त्म हो जाएंगी।

लेकिन ऐसा हुआ नहीं। पहले से महंगाई की मार झेल रही जनता को पेट्रोल-डीज़ल एवं रसोई के सिलेंडर और भी महंगे दामों पर खरीदने पड़े। 2 करोड़ रोज़गार हर साल देने के वादे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार से नौजवानों को बहुत उम्मीदें थी, लेकिन मोदीराज में बेरोज़गारी ने 45 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। जनता ने बीजेपी के उस वादे पर भी भरोसा किया था, जिसमें उसके शहरों को स्मार्ट बनाए जाने की बात कही गई थी। लेकिन 5 साल बीत जाने के बाद जनता को मायूसी ही हाथ लगी।

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बीजेपी के वादे के मुताबिक किसानों को भी उम्मीद थी कि उसकी आय दोगुनी हो जाएगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जिसके नतीजे में किसानों ने रिकॉर्ड तोड़ आत्महत्या की। इसी तरह महिलाओं को लगा था कि नई सरकार उनकी सुरक्षा की दिशा में कड़ा कदम उठाएगी, लेकिन इन पांच सालों में सत्ताधारी पार्टी के नेता ही महिलाओं की अस्मत के साथ खिलवाड़ करते नज़र आए। ऐसे में बीजेपी को उसके पांच साल के कामों की बुनियाद पर वोट मिलने की कम उम्मीद नज़र आती है!

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