मोदी सरकार पर अबतक ये आरोप लगातार लगता रहा है कि ये सरकार उद्योगपतियों की सरकार है। इस सरकार ने जाते-जाते भी इस तमगे को बरक़रार रखा है। मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में हज़ारों करोड़ रुपए का उद्योगपतियों का कर्ज़ माफ़ किया है।

सार्वजानिक क्षेत्र के 19 बैंकों ने वित्त वर्ष 2018-19 में 41,000 करोड़ रुपए राईट ऑफ़ किया है। राईट ऑफ करने का मतलब है बैलेंश शीट से उस कर्ज़ का हिसाब-किताब ख़त्म कर उसे माफ़ कर देना। विडंबना ये है कि इस वित्त वर्ष में सार्वजानिक क्षेत्रों के बैंकों का बैड लोन यानि एनपीए 34 फीसदी बढ़कर करीब 41,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है।

और सरकारी बैंकों ने इतना ही पैसा माफ़ भी कर दिया है। तीसरी तिमाही में विजया बैंक ने साल-दर-साल राइट ऑफ में 243 गुना की वृद्धि देखी है, जिसके बाद ये आंकड़ा 487 करोड़ रुपए तक पहुंचा।

वहीं अगर बात आईडीबीआई बैंक की करें तो इस बैंक ने राइट ऑफ में साल-दर-सार 4783 फीसदी की वृद्धि दर्ज की है और ये आंकड़ा 562 करोड़ रुपए रहा।

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सबसे बड़ी माफ़ी देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने की। उसने इस वर्ष 10,000 करोड़ का कर्ज़ माफ़ किया। इसे उद्योगपतियों की माफ़ी कहने का एक बड़ा कारण है।

एन.पी.ए बैंकों का वो लोन होता है जिसके वापस आने की उम्मीद नहीं होता। इस कर्ज़ में 73% से ज़्यादा हिस्सा उद्योगपतियों का है। अक्सर उद्योगपति बैंक से कर्ज़ लेकर खुद को दिवालिया दिखा देते हैं और उनका लोन एन.पी.ए में बदल जाता है।

यही उस लोन के साथ होता है जिसे बिना चुकाए नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग देश छोड़कर भाग जाते हैं। इसलिए ही इस माफ़ी को उद्योगपतियों के कर्ज़ की माफ़ी कहा जा रहा है।

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सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार लगातार इस माफ़ी की रकम को बढ़ा रही है। अपने कार्यकाल में ये सरकार चालू वित्त वर्ष की रकम को मिलाकर 3.98 लाख करोड़ रुपए का एनपीए माफ़ कर चुकी है।

बता दें, कि आरबीआई की सितम्बर 2018 में आई रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2014 में देश के बैंकों पर 2.16 लाख करोड़ रुपए का कर्ज़ था जो मोदी सरकार के कार्यकाल में बढ़कर 8.25 लाख करोड़ रुपए हो गया है। इस सरकार के कार्यकाल में बड़े बैंक घोटाले बड़ी संख्या में सामने आए हैं।

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