वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने वाद किया था को वो भारत को विश्व के सबसे विकसित देशों की गिनती में लाकर खड़ा कर देंगें। अपने इस वादे को पूरा करने के लिए उन्होंने कई वादें और किये थे।

उन वादों में सालाना 2 करोड़ रोज़गार, देश की जीडीपी डबल डिजिट में करना और देश में उद्योगों के लिए नए और बड़े अवसर लेकर आना है।

इसलिए ये देखा गया कि वर्ष 2014, में कॉर्पोरेट ने भी भाजपा पर भरोसा जताया और उसे समर्थन दिया। लेकिन विडंबना ये है कि हो उसका उल्टा रहा है।

जिस कॉर्पोरेट के लिए नरेंद्र मोदी ने नए अवसर पैदा करने का वादा किया था उसकी स्तिथि भी वर्तमान में पहले के मुकाबले ख़राब हो चुकी है।

देश की शीर्ष कंपनियों की विकास दर पहले के मुकाबले कम हो चुकी है। यूपीए राज में 2006 से 2014 के बीच बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के बीएसई-500 इंडेक्स में शामिल कंपनियों के मुनाफे की ग्रोथ 11% ही रही। मोदी सरकार के चार साल के राज में ग्रोथ रेट 8% रही।

कंपनियों की विकास कम होना कई बातों को दर्शाता है। विकास दर अगर तेज होती मतलब तो डिमांड अधिक होती है, तो कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है। और अब अगर वो कम हैं मतलब बाज़ार में मांग नहीं हैं और पहले के मुकाबले कम्पनियाँ भी घाटे में चल रही हैं।

दरअसल, वर्ष 2016 में, नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी ने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र पर असर डाला है। इसका ज़्यादातर असर छोटे उद्योगों और असंगठित क्षेत्र पर पड़ा है।

लेकिन अर्थव्यवस्था में बाज़ार आपस में जुड़ा हुआ है और तो आम जनता पर पड़ने वाले असर ने बड़ी कंपनियों को प्रभावित किया है।

सरकार की इन आर्थिक गलतियों ने जनता की जेब ढीली की। वर्ष 2016, के बाद से ही जितने भी त्यौहार आए उस दौरान बाज़ार ठंडा पड़ा रहा।

मीडिया ने भी इस चीज़ को दिखाया गया कि लोगों के पास पैसा ना होने के कारण वो खरीदारी और निवेश दोनों ही नहीं कर रहे हैं। इसका ही असर कंपनियों पर पड़ा है और उनकी विकास दर पहले के मुकाबले इतनी गिर गई है।

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