डॉलर की तुलना में रुपया के लगातार कम होने की खबर अब आम होने लगी है। बीते 15 दिसंबर को खबर आयी थी कि रुपया 40 पैसे टूटकर 20 महीने के निचले स्तर पर चला गया है। उस दिन रुपया 76.28 तक गिर गया था।
अब खबर आयी है कि चालू तिमाही (अक्टूर-दिसंबर) में रुपया एशिया के 48 देशों में सबसे ज्यादा टूटा है। अन्य 47 देशों की करेंसी की तुलना में रुपया की स्थिति लगातार गंभीर बनी हुई है। लम्बे समय से रुपया 75 के नीचे आ ही नहीं पाया है। इससे भी ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि रुपया में ये गिरावट कोरोना की वजह से नहीं आयी है।
तो क्या है वजह?
ब्लूमबर्ग के हावले से दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशी निवेशक लगातार भारतीय बाजार से पूंजी निकाल रहे हैं। अक्टूर से दिसंबर के बीच विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से 34 हजार करोड़ रूपया निकाल लिया है। यही वजह है कि डॉलर की तुलना में रुपया की कीमत लगातार कम हो रही है।
गिरावट के ट्रेंड को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि अगली तिमाही यानी मार्च 2022 तक रुपया की कीमत में और गिरावट आ सकती है। अनुमान के मुताबिक, 1 डॉलर की कीमत 78 रुपये तक पहुंच सकती है। अगर मौजूदा गिरावट बरकरार रही तो वित्तवर्ष 2021-22 रुपये में गिरावट का लगातार चौथा साल बन सकता है।
और बढ़ेगी महंगाई
डॉलर की तुलना में रुपया की गिरावट मंहगाई को और बढ़ा सकती है। अगर सरकार की तरफ से राहत ना दी गई तो पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत में उछाल तो लगभग तय है। क्योंकि देश को अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी क्रूड ऑयल आयात करना पड़ता है, जिसकी कीमत डॉलर में अदा करनी पड़ती है।
इसके अलावा किचन का खर्च भी बढ़ सकता है। भारत ने इस साल 131.3 टन खाद्य तेल आयात किया है। अगर डॉलर के मुकाबले रुपया ऐसे ही गिरता रहा तो आयात महंगा होता जाएगा, जिससे आयात की गई वस्तुओं की कीमत में बढ़ोत्तरी होगी।
रुपया के कमजोर होने से विदेश में पढ़ाई करना भी महंगा हो जाएगा। बता दें कि इस साल भारत से करीब 3 लाख विद्यार्थी विदेशों में पढ़ाई के लिए गए हैं। रुपये की गिरावट उनका खर्च बढ़ा सकता है।