सवर्ण समाज को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने वाला विधेयक पास हो गया है। राष्ट्रपति के साइन करते ही ये विधेयक पूरी तरह से क़ानून की शक्ल ले लेगा और तभी से 8 लाख से कम सालाना आमदनी वाला सवर्ण इसका फ़ायदा उठा सकेगा। मोदी सरकार ने आर्थिक आधार पर सवर्ण समाज को आरक्षण दिया है।

हालांकि संविधान संशोधन करके मोदी सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण को भी संविधान में जोड़ दिया। पर क्या आरक्षण देने का संविधान का मूल मक़सद ग़रीबी दूर करना था?… इसका जवाब है नहीं!

संविधान में दलित, वंचित, पिछड़े, दबे-कुचले समाज को आरक्षण इसलिए दिया गया था, ताकी उनके साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव, छुआछूत को दूर किया जा सके…

सवर्णों को 10% आरक्षण मिला तो हम दलित-पिछड़े भी 90% लेकर रहेंगे, देश में बहुजन क्रांति ला देंगे : RJD

ताकी पिछड़े समाज से आने वाले लोग भी नौकरियों में अहम हिस्सेदार बनकर दुबे, पाण्डेय और चौबे जी के पास बैठ सकें।…. ताकी दलितों-पिछड़ों का सामाजिक उन्मूलन हो सके।  संविधान में आरक्षण इसलिए है… नाकि ग़रीबी दूर करने के लिए-

दलित नेता जिग्नेश मेवाणी लिखते हैं कि-

मोदी जी के 10 प्रतिशत वाले आरक्षण का मतलब यह भी निकलता है कि कैंसर की बीमारी के लिए विटामिन बी-12 का इंजेक्शन। प्रधानमंत्री जी आरक्षण गरीबी निर्मूलन के लिए नहीं, गैर बराबरी दूर करने और सामाजिक समानता से वंचित SC-ST-OBC को प्रतिनिधित्व देने के लिए है। मोदी जी, आप अच्छा नहीं कर रहे

वैसे भी ग़रीबी दूर करने के सरकारें चुनी जाती हैं। अगर आरक्षण से ही सबकी ग़रीबी दूर करनी है तो हम चुनाव में हिस्सा क्यों ले?

बहरहाल मोदी सरकार का चुनाव से ऐन पहले सवर्ण आरक्षण की चाल नोटा की ओर जा रहे उसके सवर्ण वोटबैंक को वापस अपनी ओर खींचने से ज़्यादा और कुछ नहीं है।

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