जेएनयू में फीस वृद्धि के खिलाफ चल रहे छात्रों के आंदोलन में पुलिस ने नेत्रहीन छात्र शशिभूषण पांडेय (समद) के पेट और गले पर जूतों से बेरहमी से मारा था। पुलिस की पिटाई से घायल शशिभूषण को अस्पताल में भारती करवाया गया था। शशिभूषण के चाचा अनिल पांडेय जोकि यूपी के संतकबीर नगर के भाजपा किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष हैं।

चाचा अनिल पांडेय ने फेसबुक के जरिए अपने भतीजे शशिभूषण की पिटाई को लेकर गुस्सा जाहिर किया है। बीजेपी की तरफ से अपने भतीजे और जेएनयू छात्रों के बारे में सोशल मीडिया में चल रही देशद्रोही-गद्दार जैसी टिप्पणियों उन्होंने फेसबुक पर लिखा है कि, “जेएनयू में यदि देशद्रोही हैं तो मेरा परिवार क्या है?”

मैं ब्लाइंड हूं मुझे क्यों मार रहे हो? तो पुलिस बोली- प्रोटेस्ट में आया क्यों? फिर वो लातों से मारने लगे

अनिल पांडेय ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, “जेएनयू के छात्रों द्वारा आंदोलन में मेरा बेटा शशिभूषण पांडेय भी पुलिस के तांडव का शिकार हुआ उसे गंभीर अवस्था में एम्स में भर्ती किया गया। मैं अनिल पांडेय संत कबीर सन्ग जिले का भाजपा किसान मोर्चा का जिला अध्यक्ष हूं। मेरा परिवार जनसंघ के ज़माने से भाजपा से जुड़ा हुआ है। जो लोग कहते हैं कि जेएनयू वाले देश द्रोही हैं वह हमें बताएं कि मेरा परिवार क्या है?”

उन्होंने आगे लिखा है कि, “आज हमारे बेटे को चोट लगी है इसका जिम्मेदार कौन है? जेएनयू में गरीब परिवार के मेधावी छात्र अध्ययन करते हैं देशद्रोही नहीं सब हमारे और आपके परिवार के हैं आप लोग दुआ करें कि हमारा बेटा जल्दी स्वास्थ्य हो।”

वहीं हिंदुस्तान के बात करते हुए अनिल पांडेय ने कहा, “परिवार के कई सदस्य सेना में हैं। जेएनयू में भतीजा पढ़ रहा है। वह वहां छात्रसंघ का सदस्य भी है। फीस वृद्धि को लेकर चल रहे आंदोलन में उसकी क्या भूमिका है मैं नहीं जनता लेकिन संसद मार्च के दिन हुए लाठीचार्ज की घटना के बाद से परिवार परेशान था।

नेहरू पढ़े-लिखे थे इसलिए उन्होंने IIT-IIM खुलवाए अबकुछ अनपढ़ इन्हें बंद करवा रहे हैं : पत्रकार

शशिभूषण का मोबाइल स्विच ऑफ आ रहा था। काफी कोशिशों के बाद रात 11 बजे के आसपास एक डॉक्टर के जरिए उसे एम्स ले जाने वाले साथी से बात हुई। रात एक बजे के शशिभूषण से बात हो पाई। तब जाकर परिवार को थोड़ी तसल्ली हुई।”

अनिल ने बताया कि समद ने ही परिवार के लोगों को दिल्ली आने से यह कहते हुए मना कर दिया कि किसी को परिसर में जाने नहीं दिया जा रहा है। दिल्ली में रहने वाले कुछ परिचितों को वहां भेजा गया लेकिन वे भी समद से नहीं मिल पाए। समद की आंखों की रोशनी दो-तीन साल की उम्र में चली गई थी।समद के पिता का देहांत 2007 में हो गया था।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here