जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं द्वारा किए जा रहे आंदोलन के सामने सरकार झुकती हुई नजर आ रही है, हॉस्टल फीस में की गई बेतहाशा वृद्धि को थोड़ा कम करके उन्हें रियायत देने का दावा कर रही है। हालांकि सरकार अधूरी राहत देकर पूरा प्रोपेगंडा चला रही है।

खबर है कि अब हॉस्टल में जिस शेयरिंग रूम रेंट को 10 रुपए से बढ़ाकर 300 रुपए किया गया था अब उसे घटाकर 100 रुपए किया जा रहा है। और जिस सिंगल रूम का किराया 20 रुपए से बढ़ाकर 600 किया गया था वो अब 200 रुपए किया जा रहा है।साथ ही डिपॉजिट में की गई बेतहाशा वृद्धि को वापस ले लिया गया है और फिर से 5500 रुपए ही रखा जा रहा है। फीस बढ़ोतरी को वापस लेने की घोषणा शिक्षा सचिव ने खुद अपने ट्विटर हैंडल से की है।

भले ही ऊपरी तौर पर देखने में इसे एक बड़ी राहत कही जाए और प्रशासन इसे छात्रहित का फैसला बताए लेकिन छात्र इससे भी संतुष्ट होते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं।

उनका कहना है कि पहले फीस को कई गुना बढ़ा दी गई और अब हमारे आंदोलन के डर से थोड़ी बहुत घटा दी गई है। आखिरकार हमें बढ़ी हुई फीस तो देनी पड़ रही है। इसलिए जेएनयू प्रशासन और मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी और आंदोलन जारी रहेगा।

जो भी छात्र-छात्राएं सरकार और JNU प्रशासन की चालाकी को समझ पा रहे हैं, वो इस फैसले से पर आपत्ति जता रहे हैं।

सोचिए अगर यही 10 रुपए मासिक फीस को बढ़ाकर 100 रुपए किया जाता तब भी हंगामा होता और अब इसे बढ़ाकर जब 300 रुपए मासिक किया गया और फिर घटाकर 100 किया जा रहा है तो प्रशासन और मीडिया भी ये उम्मीद कर रहा है कि छात्र-छात्राएं इस पर आपत्ति ना दर्ज कराएं।

हो सकता है ये राशि देखने में बेहद मामूली लगती हो लेकिन जेएनयू को पिछले कई दशकों से 283 रुपए मॉडल के लिए जाना जाता है क्योंकि इतनी ही वार्षिक अकादमिक फीस होती है।ऐसे में छात्रों के लिए 100 रुपए प्रति महीना देना भी आर्थिक भार के तौर पर देख देखा जाना चाहिए।

JNU के तमाम छात्रों का कहना है कि ये फैसला भी लोगों की आंखों में धूल झोंकने जैसा है। ये सरकार मीडिया के जरिए लोगों को भ्रमित करके ये दिखाना चाहती है कि छात्र बेवजह आंदोलन कर रहे हैं।

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