वंचितों को ज्यादा मौका देने के लिए प्रसिद्ध जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के प्राध्यापकों पर जाति आधारित भेदभाव का आरोप जोर पकड़ने लगा है। आरोप है कि इंटरव्यू और वाइवा में ‘जातिवादी’ प्रोफेसर जाति देखकर नंबर दे रहे हैं और वंचित समुदायों के शोधार्थियों के साथ पक्षपात कर रहे हैं।

गत शुक्रवार को पीएचडी एडमिशन के परिणाम घोषित होने के बाद सोशल मीडिया पर कई ऐसे स्क्रीनशॉट शेयर किए गए, जिसमें देखा जा सकता है कि वंचित समुदाय को छात्रों 1 या 2 नंबर दिए गए हैं। जेएनयू के सेलेक्शन पैनल में शामिल प्राध्यापकों पर आरोप है कि उन्होंने जानबूझकर दलित, आदिवासी और पिछड़ा समुदाय के छात्रों को कम नंबर दिए।

वंचित समुदाय के कई छात्र सिर्फ वाइवा में कम नंबर मिलने की वजह से बाहर हो गए हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या सच में प्रगतिशील समझे जाने वाले जेएनयू में जातिवाद किया जा रहा है?

भारत में इंटरव्यू और वाइवा के दौरान होने वाले जातिवाद का इतिहास बताते हुए वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने UPSC इंटरव्यू से जुड़ा एक प्रसंग साझा किया है।

उन्होंने लिखा है, देश आज़ाद हुआ ही था। सब तरफ़ ख़ुशनुमा माहौल था। नया राष्ट्र बन रहा था। तभी 1950 में एक हादसा हो गया। नवगठित UPSC ने सिविल सर्विस की पहली परीक्षा कराई। अनुसूचित जाति के कैंडिडेट अच्युतानंद दास ने रिटेन में कुल 1050 में 609 नंबर लाकर टॉप कर लिया। रिटेन में दूसरे नंबर पर एन कृष्णन आए। 602 नंबर के साथ। जाति का सम्मान दांव पर लग गया। उसे तो बचाना ही था।

UPSC ने इंटरव्यू में कृष्णन को 260 नंबर दिए। कृष्णन सिविल सर्विस के टॉपर बन गए। जाति ने राहत की साँस ली। लेकिन समस्या का अंत यहाँ नहीं हुआ। अनुसूचित जाति के अच्युतानंद दास को टॉप 20 या 30 में रखने से भी जातीय स्वाभिमान को ठेस पहुँचती। तो उन्हें इंटरव्यू में सारे कैंडिडेट से कम सिर्फ 110 नंबर दिए गए।

दास साहब रिटेन के टॉपर से फ़ाइनल में 48वें नंबर पर आ गए। रिटेन में इतने अच्छे नंबर थे कि इंटरव्यू में सबसे कम नंबर दिए जाने पर भी वे IAS बन ही गए। बहुत विवाद हुआ। क्योंकि दास साहब ने जनरल नॉलेज के पेपर में भी टॉप किया था। जनरल जनरल नॉलेज में टॉप हो, इंग्लिश में अच्छे नंबर लाए, वह इंटरव्यू में फिसड्डी कैसे?”

ख़ैर जाति हित में विवाद को शांत कर दिया गया। एक खेल और हुआ। अनिरुद्ध दासगुप्ता रिटेन में 494 लाकर आख़िरी पोजिशन पर थे। उनको इंटरव्यू में सबसे अधिक 265 नंबर मिले। वे फ़ाइनल रिज़ल्ट में अच्युतानंद दास से ऊपर 22वीं रैंक पर आए। अच्युतानंद दास यूपी कैडर के IAS बने।

लगातार इंटरव्यू में कम नंबर देकर साल दर साल एससी-एसटी कैंडिडेट के आत्मविश्वास को तोड़ा गया। इस हद तक कि उन्हें अपनी ही प्रतिभा पर शक होने लगा। ख़ैर जाति का सम्मान सबसे ज़रूरी होता है। वह बच गया।

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