राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी में बुलडोजर से हुई तोड़फोड़ की कार्यवाई पर जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी समर्थक और टीवी मीडिया के लोग जश्न मनाते दिखे वहीं पर विपक्ष के नेता समेत तमाम पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता इसकी आलोचना करते दिखे।

इस मामले में सुबह ही सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर की कार्यवाई पर रोक लगा दिया था। इसके बावजूद लगभग 2 घंटे तक बुलडोजर चलता रहा और तमाम दुकानें तोड़ी जाती रहीं। इस कार्यवाई के पक्ष में अधिकारियों की दलील थी कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने रोक का आदेश दे दिया है लेकिन जब तक ऑर्डर की कॉपी उनके पास नहीं पहुंचेगी तब तक बुलडोजर चलता रहेगा।

निश्चित ही इस तरह की कार्रवाई अधिकारियों के मनमानी हो जाने का सबूत देते हैं मगर अब ये सब अब आम हो चुका है। सत्ता पक्ष के ज्यादातर लोग और मीडिया के ज्यादातर एंकर और रिपोर्टर बुलडोजर की इस कार्यवाई को जरूरी बता रहे हैं।

हालांकि विपक्षी दलों के तमाम नेता इसका विरोध कर रहे हैं जैसे सीपीआईएम की नेता वृंदा करात मौके पर पहुंची और बुलडोजर के सामने खड़ी होकर विरोध करने लगीं। इसी मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए कम्युनिस्ट पार्टी (माले) के विधायक महबूब आलम ने सोशल मीडिया पर लिखा – “देश की राजधानी में माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों के बावजूद बुलडोजर चल रहा है।

लोकतंत्र की नींव ही नहीं बल्कि बल्कि छात्रों में भी दरारें आने लगी हैं।” इसी पर प्रतिक्रिया देते हुए पत्रकार दिलीप मंडल ने तंज़ करते हुए लिखा – “डिजिटल वर्ल्ड में सेकेंड के भी छोटे हिस्से में अमेरिका का मैसेज दिल्ली पहुँच जाता है। ऑलमोस्ट रियल टाइम। लेकिन डिजिटल इंडिया में सुप्रीम कोर्ट का आदेश जहांगीर पुरी पहुँचने में लगभग पौने दो घंटे लगे। तब तक तोड़फोड़ चलती रही। डिजिटल इंडिया का क्या फ़ायदा अगर नीयत ख़राब हो?”

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद घंटों बुलडोजर की चली कार्रवाई पर एमसीडी कोर्ट को क्या सफाई देता है ये तो देखने की बात होगी मगर निश्चित ही आज की ये घटना विध्वंस की राजनीति को बढ़ावा देने वाली थी।

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