क्या भारत में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आजादी जैसी चीजें अब दम तोड़ती जा रही हैं? क्या अब भारत में यदि रहना है तो मोदी मोदी करना होगा?

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ ये कितना वीभत्स और क्रूरतम मजाक किया जा रहा है कि एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की आलोचना करने पर उसे नौकरी से निकाल दिया जाता है !

ठीक समझा आपने, हम बात कर रहे हैं श्याम मीरा सिंह की. श्याम मीरा सिंह आज तक न्यूज चैनल में सब एडिटर हुआ करते थे. कानून और अदालती मामलों, फैसलों के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं और विश्लेषण क्षमता के धनी हैं.

श्याम मीरा सिंह ने पीएम मोदी को लेकर कुछ लिखा और बदले में उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया.

श्याम मीरा सिंह ने अफगानिस्तान में शहीद हुए पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत पर पीएम मोदी पर एक भी शब्द नहीं कहे जाने पर कहा था कि मुझे याद है कि हमारे प्रधानमंत्री ने एक खिलाड़ी के अंगूठे की चोट पर ट्वीट करते दुख जताया था.

आज एक भारतीय पत्रकार अफगान में शहीद हो गया लेकिन पीएम के मुंह से एक शब्द नहीं निकला क्योंकि वो इनकी बेशर्मी पर इंकलाब लिखता था.

श्याम मीरा सिंह ने यहां तक कह दिया था कि मैं प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान तब करुं और जब खुद मोदी प्रधानमंत्री पद का सम्मान करें. इसके बाद श्याम मीरा सिंह को आज तक से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

श्याम मीरा सिंह ने इस बाबत जानकारी अपने ट्वीटर हैंडल पर साझा करते हुए लिखा कि इंडिया टुडे ग्रुप की ओर से उन्हें ट्वीट्स के दो स्क्रीनशाॅट मेल किए गए जिसमें बताया गया कि पीएम मोदी पर आनके ट्वीट के लिए आपको कंपनी से बाहर किया जाता है. श्याम मीरा सिंह ने पीएम मोदी को शेमलेस प्रधानमंत्री बताया था.

पीएम मोदी के खिलाफ लिखने पर चैनल द्वारा निकाले जाने पर श्याम मीरा सिंह ने अपने मन की बात फेसबुक पर लिखते हुए कहा कि पीएम के खिलाफ लिखे दो ट्वीट की वजह से मुझेे आजतक से निकाल दिया गया है.

मुझे इस बात का दुख नहीं है, इसलिए आप भी दुख न मनाए. मुझसे कहा गया कि आप प्रधानमंत्री पद का सम्मान करें, मैं कहता हूं कि पहले मोदी खुद पीएम पद का सम्मान करें.

श्याम मीरा सिंह ने कहा कि बतौर पत्रकार ही नहीं, देश के एक नागरिक की हैसियत से जो मुझे सही लगेगा, मैं लिखूंगा.एक प्रधानमंत्री खिलाड़ी का अंगूठा टूटने पर ट्वीट करता है लेकिन एक शहीद पत्रकार की मौत पर कुछ नहीं बोलता. मैं ऐसे प्रधानमंत्री को शेमलेस न कहूं तो क्या कहूं !

एक ऐसा प्रधानमंत्री जिसकी भाषणबाजी और लफ्फाजी ने देश के लाखों लोगों को कोरोना से मरने के लिए छोड़ दिया.

जिसके शासन में एक बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग भय में जीता है और जिसे हर रोज शाम को सब्जी लाने में डर लगता है कि कहीं मैं अपनी दाढ़ी और मुसलमान होने की वजह से मारा तो नहीं जाउंगा ! मैं अपने घर सब्जी लेकर लौट पाउंगा या नहीं !

श्याम मीरा सिंह ने कहा कि मैं ऐसे प्रधानमंत्री को शेमलेस क्यों न कहूं जो लद्दाख में शहीद हुए 21 सैनिकों की खबर को दबाए और अपनी कुर्सी बचाने के लिए दुश्मन देश को यह कहकर क्लीन चिट दे दे कि कुछ नहीं हुआ है. कोई विवाद नहीं हुआ है, हमारी सीमा में तो कोई घुसा ही नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि मैं क्यों न ऐसे प्रधानमंत्री को शेमलेस कहूं जिसके देश के किसान आठ महीनों से सड़क पर पड़े हुए हैं. सैकड़ों बुजुर्ग किसानों ने सड़क पर ही दम तोड़ दिया.

मेरी नौकरी छीन ली गई. मुझे दुख और अफसोस नहीं है क्योंकि हजार बर्क गिरे, लाख आंधिया उट्ठे, जो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं.

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