बिजनेस स्टैंडर्ड ने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की पीएलएफएस की एक रिपोर्ट का खुलासा किया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा थी।
यानी 1972 के बाद देश में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने इस रिपोर्ट को दिसंबर में ही मंजूरी दे दी थी लेकिन सरकार ने रिपोर्ट को जारी नहीं किया।
सोमवार 28 जनवरी को सांख्यिकी आयोग के दो सदस्यों ने भी इस्तीफा देते हुए सरकार पर यही आरोप लगाया था। इनका कार्यकाल 2020 में खत्म होने वाला था।
लेकिन कार्यकारी अध्यक्ष पीसी मोहनन और सदस्य जेवी मीनाक्षी ने मोदी सरकार पर ये आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया की वो रोज़गार और जीडीपी के आंकड़े छिपा रही है।
सरकार के अंतरिम बजट से कुछ दिन पहले और लोकसभा चुनाव के कुछ महीने हुए इस खुलासे से बीजेपी को भारी नुकसान हो सकता है। विपक्षी दल पर पहले से ही रोजगार के आंकड़ों को लेकर सरकार पर सवाल उठा रहे हैं।
2014 लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि वो हर साल 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे। 5 साल का कार्यकारल पूरे होने को है, कहां हैं 10 करोड़ नौकरियां?
वादे के मुताबिक हर साल दो करोड़ रोजगार तो मिले नहीं उल्टा बेरोजगारी दर ने पिछले 45 साल का रिकार्ड तोड़ दिया। शायद यही वजह है कि मोदी सरकार रोजगार के आंकड़े छिपा रही है। वामपंथी नेता कन्हैया कुमार ने भी रोजगार के आंकड़े छिपाए जाने को लेकर सरकार पर सवाल उठाए हैं।
कन्हैया ने ट्वीट किया है कि ‘नौकरी के आँकड़े इसलिए छिपाए जा रहे थे कि पिछले 45 साल में पहली बार नोटबंदी के कारण इतनी बेरोज़गारी दिखी। छिपाने के लिए सरकार इतना दबाव बना रही थी कि दो सरकारी अधिकारियों को तंग आकर इस्तीफ़ा देना पड़ा। लेकिन गप्पू जी देश को बता रहे हैं कि नोटबंदी से मकान सस्ते हो गए हैं।’
नौकरी के आँकड़े इसलिए छिपाए जा रहे थे कि पिछले 45 साल में पहली बार नोटबंदी के कारण इतनी बेरोज़गारी दिखी।छिपाने के लिए सरकार इतना दबाव बना रही थी कि दो सरकारी अधिकारियों को तंग आकर इस्तीफ़ा देना पड़ा।लेकिन गप्पू जी देश को बता रहे हैं कि नोटबंदी से मकान सस्ते हो गए हैं।#HowsTheJobs
— Kanhaiya Kumar (@kanhaiyakumar) January 31, 2019