अब्दुल हफीज़ गांधी
हिंदुस्तान के होम मिनिस्टर अमित शाह ने कई इलेक्शन रैलियों में और संसद के अंदर यह बात कही है कि सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल (CAB) लाया जाएगा जिसके तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए हुए हिंदू, क्रिश्चियन, सिख, बुद्धिस्ट और जैन को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी सिवाय मुसलमानों के। इस बात के पूरे इमकानात हैं कि यह बिल 9 दिसम्बर, 2019 को लोक सभा मे पेश किया जाएगा।
यह बिल असम में हुई एनआरसी की पूरी एक्साइज को देखते हुए लाया जा रहा है क्योंकि जो 19 लाख लोग एनआरसी से बाहर हुए हैं उनमें एक बड़ी तादाद गैर-मुसलमानों की है। मोदी सरकार यह चाहती है कि सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों को घुसपैठिए साबित किया जाये और बाकी लोग जो दूसरे देशों से भारत में आए हैं, उनको भारत की नागरिकता दी जाए। क्योंकि मोदी सरकार यह मानती है कि बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मुसलमानों को छोड़कर बाकी सभी लोगों का धार्मिक उत्पीड़न हो रहा है।
मोदी सरकार की यह सोच गलत है। धार्मिक आधार पर उत्पीड़न किसी का भी हो हिंदुस्तान ने उसे हमेशा शरण दी है। शरण के मसले में धार्मिक आधार पर भेद भाव नहीं होना चाहिए। असम में जो एनआरसी एक्साइज हुई है वह आसाम स्पेसिफिक है क्योंकि आसाम की एक खास भौगोलिक स्थिति है। आसाम बॉर्डर के पास का स्टेट है। आसाम एकॉर्ड 1985 में इसके बारे में बात की गई थी।
यह इसलिए किया जाना था क्योंकि बंगलादेश से आसाम में घुसपैठ हुई, जिसको रोकने के लिए एनआरसी की व्यवस्था दी गयी। लेकिन पूरे भारत में एनआरसी लागू करना, सभी भारतीय नागरिकों को लाइन में लगा देना और उनको यह मानना कि वह भारत के नागरिक नहीं है और वे अपनी नागरिकता साबित करें, यह कतई जायज़ नहीं है। इसीलिए एनआरसी की घोषणा की मुखालिफत होने चाहिए।
हिंदुस्तान के संविधान में धर्म के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव की इजाजत नहीं दी गई है। जो भी लोग बाहर से आएंगे वह किसी भी धर्म के मानने वाले हों, हिंदुस्तान ने हमेशा यह कोशिश की है और इसे तारीख के हवाले से भी देखा जा सकता है कि जो लोग भी धर्म के नाम पर अपने मुल्कों में सताए गए और अगर उन लोगों ने भारत में शरण लेने की कोशिश की तो हमने उन सभी लोगों को शरण दी है।
उदाहरण के लिए, जब बुद्धिस्ट चीन में सताए जा रहे थे और जब उन्होंने भारत में शरण मांगी तो हमने बहुत सारे लोगों को शरण दी। वे सभी लोग हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला में ठहरे हुए हैं। हिंदुस्तान ने कभी भी धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया। मौजूदा मोदी सरकार पूरी की पूरी कम्युनल पॉलिटिक्स करती है। सरकार मुल्क के अंदर धर्म के नाम पर लोगों को विभाजित करना चाहती है। इस देश की राजनीति को धर्म के नाम पर चलाना चाहती है और यहां हिंदू राष्ट्र स्थापित करना चाहती है।
आरएसएस और बीजेपी का एक ही उद्देश्य है कि भारत में हिंदु राष्ट्र स्थापित किया जाए। सरकार को पता होना चाहिए कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना हमारे संविधानिक मूल्य के खिलाफ है। जिन महापुरुषों ने आजादी की लड़ाई लड़ी उनके ख्यालों और सपनों के विपरीत है हिंदू राष्ट्र। जब भारत आजाद हुआ और इस देश के संविधान का निर्माण हो रहा था तब हमने अपने संविधान के अंदर भी इस तरह की व्यवस्था दी कि धर्म आधारित भेद भाव भारत मे नहीं होगा। हमारे संविधान निर्माताओं का मानना था कि इस देश को आजाद कराने में सभी धर्मों के लोगों का कॉन्ट्रिब्यूशन रहा है और इसलिए यह देश धर्मनिरपेक्ष होगा। यहां सभी धर्म के मानने वालों का आदर होगा। राष्ट्र का कोई भी धर्म नहीं होगा। राष्ट्र की नजर में सभी धर्म बराबर होंगे।
हमने अपने संविधान में आर्टिकल 25 से लेकर 28 की शक्ल में फ्रीडम आफ रिलिजन को फंडामेंटल राइट बनाया जिससे यहां के नागरिकों को पूरी आजादी होगी कि वह अपने धर्म का प्रचार प्रसार कर सकें । धार्मिक आज़ादी पर कुछ पाबंदियाँ ज़रूर लगाईं गई जैसे पब्लिक आर्डर, मोरैलिटी और हेल्थ के नाम पर कुछ रिस्ट्रिक्शन लगाई जा सकती हैं। यह धार्मिक आज़ादी नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनो को हासिल है। बीजेपी और आरएसएस इस देश को हिंदू राष्ट्र की तरफ ले जा रहे हैं। यह हमारे आईने की खिलाफवर्जी हैं। एनआरसी की पूरी एक्सरसाइज को हम सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल (CAB) से अलग करके नहीं देख सकते।
बंगाल में एक रैली में अमित शाह ने कहा कि हिंदुओं को एनआरसी से डरने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनके लिए CAB लाया जाएगा। और संसद में उनका स्टेटमैंट है कि एनआरसी और CAB अलग अलग चीज़ें हैं। अमित शाह इस देश की जनता को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं। जिस तरह का भाषण अमित शाह जी ने बंगाल में दिया और जिस तरह की सोच बीजेपी सरकार की निकल कर आ रही है उससे सीधा अंदाजा लगाया जा सकता है कि जो लोग भी एनआरसी से बाहर होंगे और अगर वो हिन्दू समाज से होंगे तो उनको सिटीजनशिप अमेंडमेंट बिल के जरिए नागरिकता दी जाएगी। और जो बचेंगे यानी मुसलमान उनको साबित कर दिया जाएगा की ये घुसपैठिये हैं।
आज देश में जो हालात चल रहे हैं कहीं ना कहीं मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक साबित करने की कोशिश की जा रही है। धार्मिक आधार पर सताये गए लोगों को हिंदुस्तान में शरण मिले, उनको नागरिकता भी मिले, यह अच्छी बात है। लेकिन इस मसले में भेद भाव करना कतई सही नहीं है। क्या पाकिस्तान में मुसलमानों को फिरके के आधार पर नहीं सताया जाता? सताया जाता है, यह जग जाहिर है। शिया और अहमदिया मुसलमानों को हर तरह की मुसीबत झेलनी पड़ती है पाकिस्तान में। तो क्या हम इन लोगों को इसलिए शरण और नागरिकता नहीं देंगे क्योंकि वो मुसलमान हैं?
CAB पूरी तरह से हमारे संविधान में दिए गए फंडामेंटल राइट्स ख़ासकर बराबरी के अधिकार के खिलाफ है। जिन लोगों को भी दूसरे देशों में सताया गया, धर्म के नाम पर प्रताड़ित किया गया उनको भारत शरण देता रहा है और आगे भी अगर लोगों को धर्म के नाम पर दूसरे देशों में सताया जाएगा तो हिंदुस्तान उनको शरण देगा।
(अब्दुल हफीज़ गांधी विधि विभाग में असिस्टेंस प्रोफेसर हैं, लेख में व्यक्त किए गए विचार एवं तथ्य लेखक के शोध और अनुभव पर आधारित हैं)