
मैं ये जंग जीत नहीं पाई माँ, लेकिन तुम हार मत मानना। तुम इंसाफ़ के लिए लड़ना।
ये आख़िरी अल्फ़ाज़ हैं संजलि के। वही संजली जिसे दरिंदों ने जलाकर मार डाला। 70 फ़ीसदी जल चुकी दर्द से कराहती संजली ने अपनी माँ से ये बात कही थी।
10वीं में पढ़ रही इस मासूम का ख़्वाब था कि एक दिन वो आईपीएस ऑफ़िसर बनेगी और समाज से ज़ुल्म और ज़ालिमों का ख़ात्मा करेगी। मगर अफ़्सोस। दो वहशी, ख़ूनी दरिंदों ने।
उसके ख़्वाब को कुचल डाला। उसकी सारी हसरतों को दफ़्न कर दिया और संजलि को वहाँ पहुँचा दिया जहाँ से वो कभी लौटकर वापस नहीं आ सकेगी।
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उसकी मौत ने हम सबकी आँखें नम कर दी है। उसके जाते-जाते ये कहना कि माँ तुम इंसाफ़ के लिए लड़ना, कानों में गूँज रहा है। रह-रह कर मन ग़ुस्से से भर जाता है कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है।
कोई इस मासूम को आग के हवाले कैसे कर सकता है। घिन्न आती है, ऐसे समाज, ऐसे लोग और ऐसी सरकार को देखकर जो गाय-गाय तो करती है लेकिन इंसान के क़त्ल होने पर ख़ामोश रहती है।
दलित लड़की को ज़िंदा जलाया गया था-
मंगलवार 18 दिसम्बर, आगरा से 20 किमी. दूर लालामऊ गाँव के पास दो दबंगों ने स्कूल से वापस लौट रही 10 वीं में पढ़ने वाली मासूम बच्ची को आग के हवाले कर दिया था।
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इस हैवानियत में बच्ची 75 फ़ीसदी झुलस गई थी जिसके बाद उसे दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लेकिन अफ़्सोस कि 36 घंटे तक जूझने के बाद उसने दम तोड़ दिया।
इतने घिनौने अपराध के बावजूद पुलिस के हाथ अब तक ख़ाली हैं। दोनो आरोपी फ़रार हैं और पुलिस सिर्फ़ बयानबाज़ी कर रही है।